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Amethi: अमेठी में दो बार ‘गांधी’ आमने-सामने आ चुके हैं, लेकिन राजीव के सामने मेनका ने जनता को उलझाया

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Amethi: 1984 के चुनाव में राजीव गांधी के सामने उनके छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी भी असमंजस में थीं। मेनका ने 1982 से ही जीत दर्ज करने के लिए यहां के दौरे बढ़ाए थे।

गांधी परिवार की चर्चा अमेठी के नाम से शुरू होती है। वास्तव में, यहाँ की राजनीतिक परिस्थिति कुछ ऐसी है। बेहद दिलचस्प, आश्चर्यजनक और सबसे महत्वपूर्ण रूप से आश्चर्यजनक। ऐसा चुनावी इतिहास है। गांधी परिवार केवल दो बार यहां पर संघर्ष कर चुका है। विरासत दोनों बार महत्वपूर्ण मुद्दा था, जो हैरान करता है। पहले चुनाव में वारिस कौन होता है, तो दूसरे चुनाव में असली गांधी कौन होता है, इसकी चर्चा होती है। अलग बात यह है कि दोनों चुनावों में हार गए गांधी ने फिर से अमेठी नहीं देखा।’

यहां से संजय गांधी ने 1980 में पहली बार जीत हासिल की। 1981 में हुए उपचुनाव में राजीव गांधी उसी साल विमान दुर्घटना में मर गए। यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई। इसके बाद राजनीति में बदलाव आया। 1984 का चुनाव दिलचस्प था जब कांग्रेस के राजीव गांधी ने अपने स्वर्गीय छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी को निर्दलीय प्रत्याशी बनाया।

Amethi: जनता उलझन में थी.

जनता उलझन में थी..। 1982 से ही मेनका गांधी ने अमेठी का दौरा शुरू कर अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी। ऐसे में अमेठी की जनता उसकी चुनाव प्रचार में उलझन में पड़ी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के साथ जनता की सहानुभूति थी, जबकि मेनका गांधी, अमेठी के सांसद रहे संजय गांधी की विधवा, उनके प्रति गहरा प्रेम था. हालांकि, राजीव ने ही जीत हासिल की।

वास्तविक गांधी की तुलना में फर्जी गांधी की चर्चा जारी रही..। 1989 में, महात्मा गांधी के पुत्र राजमोहन गांधी ने कांग्रेस के राजीव गांधी को हराया। उस वक्त भाजपा और जनता दल दोनों ने राजमोहन गांधी पर भरोसा जताया था। इस चुनाव में असली गांधी बनाम फर्जी गांधी का मुद्दा बहुत चर्चा हुई। कई प्रमुख नेताओं ने बैठक की। अमेठी की जनता ने राजीव गांधी का एक बार फिर साथ दिया, हालांकि बहुत कुछ कहा गया था।

Amethi: और जब सोनिया ने प्रचार की कमान संभाली..

और जब सोनिया ने प्रचार की कमान संभाली..। 1984 में राजीव गांधी ने सोनिया गांधी को प्रचार में उतारा था। उस समय सोनिया घर-घर जाकर महिलाओं से मिलती थीं, हालांकि वह कोई बैठक नहीं करती थीं। उन्होंने पूरे चुनाव तक प्रचार का नेतृत्व किया।

– 1977 से लेकर अब तक कांग्रेस को टिकट नहीं मिलने का पहला मौका है। कांग्रेस नेता अमेठी में 2019 के चुनाव में पराजय के बाद राहुल गांधी को फिर से चुनाव जीतने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। धरना भी दिया गया था।

– अभी भी दिल्ली तक जाना चाहते हैं, लेकिन कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिल रहा है। यह अलग है कि फिजाओं में हर दिन कई नाम देखने को मिलते हैं। जूबिन इरानी, भाजपा की स्मृति, इस बार कौन होगा? इसलिए चित्र अभी भी स्पष्ट नहीं है।

Amethi: 1984 का चुनाव 

Amethi: 1989 का चुनाव

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