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Ground Report: झारखंड के दुमका में दिलचस्प संघर्ष: एक ओर पार्टी, दूसरी ओर बहू. गुरुजी की प्रतिष्ठा दांव पर।

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Ground Report: दुमका, जहां झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन का कार्यालय है, लंबे समय से झारखंड की राजनीतिक राजधानी है। बूढ़े गुरुजी फिलहाल राजनीति में नहीं हैं, लेकिन दुमका पहले से अधिक चर्चा में है। कारण यह है कि उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपने ही दल के खिलाफ भाजपा से चुनाव लड़ा है। सीता अपना अधिकार छीनने को मुद्दा बनाकर झामुमो को घेर रही हैं।

गोड्डा संसदीय क्षेत्र में शिव का निवास कहे जाने वाले बाबाधाम देवघर में पूजा करने से पहले वासुकीनाथ मंदिर का दर्शन करना अनिवार्य है। दुमका संसदीय क्षेत्र भी पिछले चार दशक से झारखंड की राजनीति में कुछ ऐसी ही स्थिति में है। दुमका, जहां झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन का कार्यालय है, लंबे समय से झारखंड की राजनीतिक राजधानी है। बूढ़े गुरुजी फिलहाल राजनीति में नहीं हैं, लेकिन दुमका पहले से अधिक चर्चा में है। कारण यह है कि उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपने ही दल के खिलाफ भाजपा से चुनाव लड़ा है। सीता अपना अधिकार छीनने को मुद्दा बनाकर झामुमो को घेर रही हैं।

भाजपा को प्रतिक्रिया देते हुए छोटी बहू कल्पना सोरेन ने अपने पति पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेजने का मुद्दा उठाया है। दुमका ही नहीं, झामुमो की बड़ी भूमिका वाली कोडरमा-हजारीबाग में भी यह संघर्ष जारी है। यानी दुमका के दखल के बिना सियासी संघर्ष आज भी खत्म नहीं हो रहा है। वर्तमान सियासी परिस्थितियों में गुरुजी की प्रतिष्ठा दोनों तरह से खतरे में है। पार्टी एक जगह है, घर की बड़ी बहू दूसरी जगह है।

लंबे बांसों और औषधीय पौधों के लिए प्रसिद्ध दुमका सोरेन परिवार के लिए ही नहीं, भाजपा के लिए भी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। 2019 में भाजपा के सुनील सोरेन ने दुमका से आठ बार सांसद रहे शिबू सोरेन को हराकर वर्षों से चली आ रही परम्परा को तोड़ दिया। इस बार भाजपा ने सीता को प्रत्याशी बनाकर झामुमो (गठबंधन) को घेर लिया। झामुमो ने सीता की बगावत के खिलाफ प्रत्याशी तो नहीं उतारा, लेकिन उनकी पुत्री कल्पना सोरेन को प्रचार की जिम्मेदारी दी है। झारखंड की राजनीति में वासुकीनाथ यानी दुमका से शुरू हुई देवरानी-जेठानी की लड़ाई अब पूरे राज्य में चर्चा का विषय है।

ऐसा ही झारखंड में वासुकीनाथ मंदिर की बाबाधाम से करीब 22 किमी की दूरी है। आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में आते-जाते, संसदीय क्षेत्र गोड्डा से दुमका में बदल जाता है। अधिकांश आदिवासी गांव खजूर के पेड़ों से घिरे जंगलों के बीच हर कुछ किमी पर हैं। हर आठ-दस किमी, यानी दो-चार गांवों के बाद, मिशनरी के बड़े अस्पताल या स्कूल मिलते हैं, जो दिल्ली-एनसीआर के निजी अस्पताल-स्कूलों से कम नहीं लगते। हाल ही में, मिशनरी के इन भवनों के सामने या आसपास भगवा झंडों और बजरंगबली के मंदिर भी तेजी से बढ़े हैं। इनके प्रति आदिवासियों का लगाव भी तेजी से बढ़ता दिखाई देता है।

Ground Report: झामुमो अब भाजपा के भीतर और बाहर का मुद्दा है

दुमका के भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने कमल का निशान हाथ में लेकर सीता को थमाया है। सीता रामगढ़ (हजारीबाग) के नेमरा से हैं। यह चर्चा है कि झामुमो ने एक तीर से दो बार दुमका के शिकारीपाड़ा से विधायक और स्थानीय प्रत्याशी नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है। एक तो भीतरी उम्मीदवार का दांव है, और दूसरा, बड़ी बहू के खिलाफ परिवार से किसी को नहीं उतारकर खुले विरोध से बचने का उपाय है। भाजपा ने पिछले तीन चुनावों में शिबू सोरेन को हराने के लिए इसी हथियार का इस्तेमाल किया है और इसी हथियार से शिबू सोरेन को हराया भी था।

Ground Report: पहले चुनाव से अब तक सोरेन का ही कब्जा

1952 में, कांग्रेस के पॉल जुझार सोरेन ने दुमका सीट पर पहली बार चुनाव जीता। तब से अब तक इस लोकसभा सीट पर हुए 19 मुकाबलों में सोरेन बिरादरी ने ही जीत हासिल की है। 1980 से, यह सीट शिबू सोरेन के रंगों में रंगी गई थी, जिसमें अधिकांश लोग उनके अजीज थे। आज भी परिस्थितियां कुछ ऐसी ही हैं। यद्यपि शिबू बीमार हैं और चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन उनकी पार्टी के प्रिय नलिन सोरेन और उनकी पुत्रवधू सीता सोरेन विरोधी पक्ष में हैं। ताज किसी सोरेन के सिर पर ही सजेगा, चाहे यानी जीते।

Ground Report: झारखंड के दुमका में दिलचस्प संघर्ष: एक ओर पार्टी, दूसरी ओर बहू. गुरुजी की प्रतिष्ठा दांव पर।

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