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Herbal Farming: गांव के किसानों के लिए हर्बल खेती करते हैं, मुनाफा नहीं कमाते, बाबूलाल मानव नजीर बन गए

Herbal Farming:

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Herbal Farming: गाजीपुर में रहने वाले 82 वर्षीय बाबूलाल मानव का हर्बल खेती का शौक देखने लायक है। वह भी आसपास के किसानों को पारंपरिक खेती से हर्बल खेती की ओर प्रेरित करते हैं। उनकी सहायता के लिए उन्हें मुफ्त में हर्बल पौधे मिलते हैं। उन्हें मुनाफा कमाना नहीं है।

कुछ लोगों ने बोहेमियन लाइफस्टाइल (रूढ़मुक्त जीवन) के आम रुझान से बाहर निकलकर अपनी पहचान बनाई है। गाजीपुर के 82 वर्षीय बाबूलाल भी इसी श्रेणी में आते हैं। बाबूलाल ने पारंपरिक खेती छोड़कर हर्बल खेती शुरू की। अब वह दूसरे किसानों के लिए एक उदाहरण हैं। बाबूलाल का कहना है कि वह खेती मुनाफा कमाने के लिए नहीं करते हैं।

बाबूलाल मानव जमानिया ब्लॉक के अध्यक्ष रहे हैं। सात वर्षों तक वह ब्लॉक प्रमुख था। 1940 में जन्मे थे। 1972 में, किसान पिता के बेटे बाबूलाल मानव ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की। इसी साल उन्होंने छात्रसंघ चुनाव में भाग लिया था। वह निरंतर कुछ नया करने का प्रयास करते रहते हैं। लेमन ग्रास कैश क्रॉप की खेती करके उन्होंने दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया। कृषि प्रदर्शनी में लेमन ग्रास की खेती से प्रेरणा मिली। वह दो हजार रुपये के पौधे वहाँ से लाकर अपने घर पर लगाए।

Herbal Farming: हर सीज़न ३० हजार रुपये कमाने में सक्षम था लेकिन..।

लेमन हर समय बाबूलाल से खाना मांगकर ले जाता है। बाबू लाल ने उस समय जितना लेमन ग्रास उगाया था, उसे बेचकर एक सीजन में लगभग ३० हजार रुपये तक कमाई करना चाहता था। उनकी हर्बल खेती कभी कारोबार नहीं हुई। वह स्थानीय लोगों को हर्बल जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करना चाहते हैं। वह साल में लेमन ग्रास की तीन से चार बार कटिंग करते हैं। उनके पास खस भी है। खस का तेल निकालकर 1000 से 1500 रुपये प्रति लीटर में बेचा जाता है। गाजीपुर में खस का तेल निकालने की व्यवस्था नहीं होने के कारण अच्छी कमाई नहीं हो सकती है।

Herbal Farming: “बेटों को हर्बल कृषि में रुचि नहीं है”

बाबूलाल ने बताया कि आज उनका घर चारों तरफ पानी से घिरा हुआ है। वहाँ जाने का एकमात्र उपाय है नाव। वह उस स्थान पर अकेले रहते हैं। उम्र 82 वर्ष है। शरीर अब उनके साथ काम नहीं करता, लेकिन वह अपने दैनिक काम खुद करते हैं। खेती के लिए अपने बच्चों का सहयोग लेना चाहिए। उनके बेटों को हर्बल कृषि में दिलचस्पी नहीं है। जब तक वे जीवित हैं, लोगों को जरूरत पड़ने पर हर्बल प्लांट्स मिलते रहेंगे।

Herbal Farming: एलोवेरा, सतावरी, लेमन ग्रास और खस के पौधे लगाएँ

बाबूलाल अपने इलाके के अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं। अब स्थानीय किसानों को गेहूं और चावल जैसे पारंपरिक फसलों को छोड़कर हर्बल पौधे उगाने के लिए भी प्रेरित करते हैं। साथ ही उसे औषधीय पौधे उगाने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं, जिससे वह अच्छी कमाई कर सकें। बाबूलाल लेमन ग्रास, सतावरी, एलोवेरा, खस और अन्य औषधीय पौधे भी अपने खेत पर लगाए हुए हैं।

Herbal Farming: गांव के किसानों के लिए हर्बल खेती करते हैं, मुनाफा नहीं कमाते, बाबूलाल मानव नजीर बन गए


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