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High Court: 44 साल बाद, दोस्त की हत्या में आजीवन कारावास पाए तीन विद्यार्थी बेगुनाह साबित

Uttar Pradesh

High Court: मामला सिविल लाइंस मुजफ्फनगर थाना के केशवपुरी मोहल्ले का है। अभियोजन की कहानी बताती है कि छात्र अजय छह जनवरी को अपने साथी राजेश से डीजल के पैसे वापस लेने के लिए ताऊ रघुनाथ से कहा गया था। लेकिन वह वापस घर नहीं आया। रघुनाथ ने आठ जनवरी को भतीजे की मौत की सूचना दी। तलाश के बाद राजेश की खोज शुरू हुई।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 44 साल पहले मुजफ्फरनगर डीएवी कॉलेज में बीए कर रहे एक छात्र की हत्या के दोषी तीन दोस्तों को बेगुनाह ठहराया। उन्हें मिली आजीवन करावास की सजा को कोर्ट ने रद्द कर दी। राजेश, ओमवीर और एक नाबलिग आरोपी की सजा के खिलाफ चार दशक पहले दाखिल अपील का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। अपील करने वालों की ओर से सुनील वशिष्ठ और वरिष्ठ अधिवक्ता बृजेश सहाय ने दलील दी।

High Court: मामला सिविल लाइंस मुजफ्फनगर थाना के केशवपुरी मोहल्ले का है। अभियोजन की कहानी बताती है कि छात्र अजय छह जनवरी को अपने साथी राजेश से डीजल के पैसे वापस लेने के लिए ताऊ रघुनाथ से कहा गया था। लेकिन वह वापस घर नहीं आया। रघुनाथ ने आठ जनवरी को भतीजे की मौत की सूचना दी। तलाश के बाद राजेश की खोज शुरू हुई। फिर मिनाक्षी सिनेमाघर के पास उसे गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में अजय का शव सुखवीर नामक मकान से केशवपुरी मोहल्ले में राजेश की निशानदेही पर बरामद हुआ।

High Court: ओमवीर इस कमरे में रहता था। राजेश, ओमवीर और एक नाबालिग को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने मामले में आरोप पत्र दाखिल किया था। अभियोजन ने 13 गवाह अदालत में पेश किए। 30 जून 1982 को मुजफ्फनगर के अपर जिला व सत्र न्यायालय ने राजेश सहित तीन अभियुक्तों को हत्या और सुबूत मिटाने के दोषी ठहराया और उन्हें अजीवन कारावास की सजा सुनाई।

1982 में, तीनों ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। ओमवीर और राजेश को अपील के दौरान वयस्क आरोपी के रूप में सुनाया गया, जबकि तीसरे आरोपी को 2017 में नाबालिग घोषित किया गया था। हाईकोर्ट ने चौबीस वर्षों से चली आ रही अपील का समाधान करते हुए तीनों आरोपियों को आजीवन करावास की सजा से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में पेश अभियोजन के गवाहों की ओर से मृतक के अंतिम दृश्य के बारे में दिए गए बयानों में विरोधाभास था और शव की बरामदगी संदेहास्पद थी।

High Court: मुक़दमेबाजी में बिताई युवावस्था

मामले में 44 साल पहले फंसे ओमवीर और राजेश अब 60 के पार हैं। हालाँकि, सजा मिलने के बाद नाबालिग घोषित आरोपी भी लगभग 59 वर्ष का है। मुकदमेबाजी के लगभग चार दशक के बाद, तीनों आरोपियों को बेगुनाह घोषित किया गया।

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