Kargil Vijay Diwas: मेरठ के वीर सपूतों की बहादुरी का सबूत कारगिल का रण है। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर इन जवानों की वीरता को स्मरण किया जाता है। अपनों को खोने वाले परिवारों का गर्व अभी भी जारी है। ये देश शहीदों के परिवारों का ऋण कभी नहीं चुका पाएगा।
कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सीमा से बाहर कर दिया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसके बाद ऑपरेशन पूरी तरह सफल होने की घोषणा की। मेरठ के पांच वीरों को इस युद्ध में देश की सेवा करनी पड़ी। इन जांबाजों के परिवारों को आज भी गर्व है। ये देश इन शहीदों के परिवारों के ऋण कभी नहीं चुका पाएगा।
Kargil Vijay Diwas: टाइगर हिल पर योगेंद्र यादव ने दुश्मन की गोलियां झेली
टाइगर हिल पर कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने सबसे अधिक नुकसान उठाया। दुश्मन 18 हजार फीट की ऊंचाई पर है और हमारे युवा उसके नीचे हैं। शत्रु भी पत्थर फेंक सकते हैं, जो गोली की तरह लगता है। मशीनगन चल रही थी। कई युवा अफसर शहीद हो गए। मेरठ की योगेंद्र यादव बटालियन को फिर से काम दिया गया।
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने अपने सात सहयोगियों के साथ लक्ष्य पर पहुंचकर पाकिस्तानी बंकरों को तोड़ डाला। दुश्मन के 17 जवानों को मार डाला। योगेंद्र सिंह यादव पांच जुलाई 1999 की शाम को दुश्मन की जवाबी गोलीबारी में मारे गए। उनकी साहस की प्रशंसा में उन्हें वीर चक्र मेडल दिया गया।
Kargil Vijay Diwas: यशवीर सिंह ने दुश्मनों को नेस्तानाबूद किया
रोहटा रोड पर रहने वाली वीर महिला मुनेश देवी बताती हैं कि उनके पति हवलदार यशवीर सिंह की बटालियन को तोलोलिंग का काम सौंपा गया था। 12 जून को मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में दो राजपूताना राइफल के ९० जवानों ने इस स्थान पर हमला बोल दिया। प्वाइंट 4950 पर कब्जा करने के लिए भयंकर संघर्ष हुआ।
हवलदार यशवीर सिंह ने सीने पर गोलियां लगने के बावजूद पाकिस्तानी सेना के बंकरों पर ग्रेनेड से हमला किया। 40 से 50 शत्रुओं को मारकर शहीद हो गया। 13 जून 1999 को भारतीय सेना ने तोलोलिंग पर राष्ट्रीय झंडा फहराया।
तिरंगा फहराकर मेजर मनोज तलवार शहीद
फरवरी 1999 में मवाना रोड, डिफेंस कॉलोनी ए-34 में रहने वाले मेजर मनोज तलवार को फिरोजपुर, पंजाब में नियुक्त किया गया, लेकिन वह देश के लिए काम करना चाहते थे। उन्हें सियाचिन में काम मिला। जब कारगिल में युद्ध हुआ, तो उनकी बटालियन टुरटुक चली गई।
13 जून को उन्होंने कारगिल क्षेत्र के टुरटुक में राष्ट्रध्वज फहराया। उस समय वह शत्रु की तोप से मारा गया। कुछ दिन पहले उनके पिता, रिटायर्ड कैप्टन पीएस तलवार का भी निधन हो गया था।
फतह के बाद सत्यपाल सिंह की शहादत
जनवरी 1999 में लांसनायक सत्यपाल सिंह, मूलरूप से गढ़मुक्तेश्वर के लुहारी गांव निवासी, जम्मू चले गए। इसी बीच कारगिल का संघर्ष शुरू हुआ।
उनकी बटालियन सेकेंड राजपूताना राइफल्स को कारगिल में भाग लेने का आदेश दिया गया था। तोलोलिंग जीतने के बाद 28 जून को वह द्रास सेक्टर में सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गया। तब उनके बड़े बेटे पुलक को साढ़े तीन वर्ष और छोटी बेटी दिव्या को ढाई वर्ष की उम्र हो गई।
Kargil Vijay Diwas: जुबैर ने शत्रुओं को पराजित किया
ललियाना में रहने वाली वीर नारी इमराना बताती हैं कि जुबैर अहमद ने 22 ग्रेनेडियर को हैदराबाद से जम्मू भेजा था। इसी बीच संघर्ष शुरू हुआ। वह अपनी पत्नी इमराना और परिवार को राहत देकर चले गए।
वह तीन जुलाई 1999 को हिंद पहाड़ी पर लड़ते हुए शहीद हो गया। सना परवीन, उनकी बड़ी बेटी, आज पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी है। छोटी बेटी निशा परवीन स्नातक कर चुकी है। बेटा खालिद जुबैर काम पर है।
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Kargil Vijay Diwas: मेरठ के ये पांच वीर वीरों ने कारगिल के युद्ध में देश के लिए अपनी जान दी और दुश्मन पर भारी पड़े।
Kargil Vijay Diwas: कैसे 25 साल पहले भारतीय सेना ने दुश्मन को दी सबसे बड़ी मात? | R Bharat