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Lucknow: भाजपा प्रत्याशियों को योगी-मोदी के भरोसे घर बैठे रहना भारी पड़ा, इसलिए यूपी में बड़ा झटका

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Lucknow: जनता नाराज़ थी। 2019 में चुनाव जीतने के बाद से सांसद पांच साल तक घर बैठे रहे और सिर्फ मोदी-योगी की मदद से जीतने का सपना देखा। परिणामों से पता चलता है कि यूपी, जो भाजपा को लगातार दो बार सत्ता में लाया है, एक बार फिर से ‘गेमचेंजर’ बन गया है।
पूर्व सांसदों की निष्क्रियता उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में हार का मुख्य कारण रही। जनता नाराज़ थी। 2019 में चुनाव जीतने के बाद से सांसद पांच साल तक घर बैठे रहे और सिर्फ मोदी-योगी की मदद से जीतने का सपना देखा। परिणामों से पता चलता है कि यूपी, जो भाजपा को लगातार दो बार सत्ता में लाया है, एक बार फिर से ‘गेमचेंजर’ बन गया है।

भाजपा और उसके सहयोगी दलों की जीत को यहां की कुल आठ सौ सीटों में आधे से भी कम पर सपा-कांग्रेस गठबंधन ने रोका। क्लीन स्वीप या सभी 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा सिर्फ 33 सीटों पर सिमट गई। भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी। ऐसे में प्रश्न उठता है कि बीजेपी ने 2014 और 2019 में पीएम मोदी को सत्ता में लाने वाले यूपी में इस बार कैसे पराजय झेली?

वास्तव में, संगठन की ओर से टिकट बदलने की रिपोर्ट हाईकमान को भेजी गई थी, जिनमें से अधिकांश सांसदों को चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक जनता से दूर रहे हैं। इनका क्षेत्र से कोई संबंध नहीं था। ऐसे कई सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निर्भर रहे, क्योंकि वे अपने पूरे कार्यकाल में जनता के बीच काम नहीं करते थे। जनता ने इसलिए बहुत से सांसदों को नकार दिया है।

माना जाता है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने स्थानीय जनता में सांसदों के खिलाफ उभरे असंतोष को समझे बगैर चुनाव में उतरे, जिसके परिणामस्वरूप सात केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल 26 मौजूदा सांसदों को सीट गंवानी पड़ी है। नेतृत्व इस असंतोष को भांप नहीं सका।

Lucknow: सांसदों की छवि में गिरावट

भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे नेता अपने-अपने तर्कों से भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट की व्याख्या कर रहे हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण उन सांसदों को पुनर्गठित करना है, जिनकी छवि खराब रही और माहौल उनके खिलाफ था। सूत्रों ने कहा कि पश्चिम से पूरब तक करीब चालिस मौजूदा सांसदों के खिलाफ स्थिति खराब हो गई है। पार्टी की जिला, क्षेत्रीय और प्रदेश इकाइयों से ऐसे सांसदों की सूची दिल्ली भेजी गई थी, लेकिन उनमें से अधिकांश को फिर से टिकट दिया गया।

Lucknow: मोदी-योगी ने पूरा प्रयास किया

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने भी आंतरिक रिपोर्ट में ‘फेल’ घोषित ऐसे सांसदों के खिलाफ बने वातावरण को भांपने की बहुत कोशिश की। जातीय समीकरणों को देखते हुए, प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों को उसी जाति के कई मंत्रियों के साथ उन पदों पर उतारा गया। इसके बावजूद जनता में व्याप्त असंतोष कम नहीं हुआ।

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