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Maha Shivaratri  पर इन बातों का ध्यान रखें, आपको भोलेनाथ की कृपा मिलेगी

Maha Shivaratri

Maha Shivaratri

Maha Shivaratri  : हिंदू धर्म में Maha Shivaratri  पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शंकर को पूजना चाहिए। माना जाता है कि इस शुभ दिन पर भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था, लेकिन कुछ अनुयायियों का मानना है कि भगवान शिव ने इस दिन तांडव नृत्य किया था। तो आइए आज कुछ महत्वपूर्ण बातें जानते हैं:

Maha Shivaratri  भी सनातन धर्म के पवित्र त्योहारों में से एक है। Maha Shivaratri 8 मार्च, 2024 को होगी। फाल्गुन महीने में हर साल यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान महादेव की पूजा की जाती है। विभिन्न लोगों का मानना है कि भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह इस दिन हुआ था, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था। आज ज्योतिष में कुछ नियमों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है. आइए जानते हैं:

Maha Shivaratri पर क्या करना चाहिए?

महाशिवरात्रि पर इन चीजों को करें

ये काम कभी भी न करें

Maha Shivaratri  : व्रत की कथा

साहुकार ने शिकारी चित्रभानु को बंदी बनाया शिव पुराण में महाशिवरात्रि की कथा बताई गई है। इस कहानी के अनुसार चित्रभानु एक प्राचीन शिकारी था। शिकारी साहूकार से कर्ज लेता था। कर्ज नहीं चुका पाने पर साहूकार ने उसे शिवमठ में कैद कर दिया। संयोग से, जिस दिन से प्रतिबंध लगाया गया था, वह महाशिवरात्रि था। इस दिन साहूकार ने अपने घर में पूजा की। पूजा के बाद कहानी पढ़ी गई। शिकारी भी पूजा और कहानियों को ध्यान से सुनता रहा।

शिकारी ने साहुकार को ऋण देने का वादा किया क्रिया पूरी होने पर साहुकान ने शिकारी को अपने पास बुलाया और उससे अगले दिन ऋण चुकाने को कहा। शिकारी ने इस पर प्रतिज्ञा की। साहूकार ने उसे छोड़ दिया। शिकारी वन में शिकार करने गया। वह रात भर शिकार खोजता रहा। उसने जंगल में ही रात बिताई।

तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर शिकारी रात बिताने लगा। बेलपत्र के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। जो बेलपत्रों से घिरा हुआ था। शिकारी कुछ भी नहीं जानता था। आराम करने के लिए उसने बेलपत्र की कुछ सखाएं तोड़ीं, जिससे शिवलिंग पर कुछ बेलपत्र की पत्तियां गिरीं।उसी जगह शिकारी भूखा प्यास से बैठा रहा। इस प्रकार शिकारी व्रत हुआ। तालाब पर एक गर्भिणी हिरणी पानी पीने आई।

शिकारी ने हिरणी को छोड़ दिया हिरणी को मारने का प्रयत्न करते हुए शिकारी ने भी धनुष पर तीर चढ़ाया। वैसे ही हिरणी ने कहा कि मैं गर्भवती हूँ और जल्द ही बच्चे को जन्म दूंगी। तुम दो जानवरों को एक साथ मार डालोगे? यह सही नहीं होगा। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगा, तब तुम मेर शिकार करो। शिकारी ने फिर से तीर हाथ में लिया।

हिरणी भी वहां से चली गई। धनुष धारण करते समय कुछ बिल्व पत्र फिर से टूट गए और शिवलिंग पर गिर गए। उससे अनजाने में ही पहली प्रहर की पूजा पूरी हो गई। कुछ देर बाद एक हिरणी उधर से चली गई। पास आते ही शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर लक्ष्य किया।लेकिन तभी शिकारी ने हिरणी से कहा कि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से चला गया था। मैं कामुक विरहिणी हूँ। मैं अपने प्रेमी को खोज रहा हूँ। मैं अपने पति से मिलकर आपसे मिलेंगे। इस हिरणी को भी शिकारी ने छोड़ दिया। शिकारी सोचने लगा।

इसी समय रात्रि का अंतिम प्रहर बीत गया। इस बार भी, उसके धनुष से शिवलिंग पर कुछ बेलपत्र गिरे, जिससे दूसरे दिन की पूजा भी पूरी हो गई। तब तीसरी हिरणी दिखाई दी, अपने बच्चों के साथ। शिकारी ने धनुष उठाकर लक्ष्य किया। शिकारी तीर छोड़ने वाली ही थी कि हिरणी ने कहा कि वह इन बच्चों को उनके पिता को सौंप देगी और फिर वापस आ जाएगी। मैं अभी जानकारी चाहता हूँ। शिकारी ने ऐसा नहीं किया। उसने बताया कि मैं दो हिरणी छोड़ चुका था। शिकारी को हिरणी ने कहा कि मुझे विश्वास करो, मैं वापस आने का वादा करती हूँ।

जब शिकारी ने हिरणी को प्यार किया, तो उसे भी छोड़ दिया। उधर एक भूखा प्यासा शिकारी अनजाने में शिवलिंग पर बेल की पत्तियां तोड़ता रहा। सुबह की पहली किरण ने उसे एक मृग दिखाया। शिकारी ने खुश होकर अपना तीर धनुष पर चढ़ाया, लेकिन दुखी मृग ने शिकारी से कहा कि अगर तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार डालो। मैं इस दर्द को सहन नहीं कर सकता, इसलिए देर मत करो। उन हिरणियों का मैं पति हूँ। यदि आपने उन्हें जीवन दिया है, तो मुझे भी छोड़ दो।

मैं वापस अपने परिवार से मिलने आऊंगा। शिकारी ने भी उसे छोड़ दिया। सुबह हो चुकी थी जब सूरज पूरी तरह से निकल गया था। शिकारी से अनजाने में ही व्रत, रात्रि-जागरण, सभी प्रहर की पूजा और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने की प्रक्रिया पूरी हो गई। भगवान शिव की कृपा से उसे तुरंत लाभ हुआ।

भगवान शिव की कृपा से शिकारी का हृदय बदल गया, मन भी बदल गया। शिकारी को कुछ देर बाद पूरा मृग परिवार दिखाई दिया। ताकि शिकारी शिकार कर सकें। लेकिन शिकारी ऐसा नहीं करते थे और सभी को छोड़ देते थे। शिकारी ने महाशिवरात्रि के दिन पूजन की प्रक्रिया पूरी करके मोक्ष प्राप्त किया। शिकारी मरने पर यमदूत उसे लेने आए, लेकिन शिवजी ने उसे वापस भेज दिया। शिवगण शिकारी को शिवलोक ले गए।

भगवान शिव की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु स्वयं के पिछले जन्म को याद रख पाए और Maha Shivaratri  के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए.

Disclaimer : यहां उपलब्ध जानकारी केवल मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। vrnewslive किसी भी तरह की मान्यता या सूचना की पुष्टि नहीं करता है। मान्यता या जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श लें।

Maha Shivaratri  पर इन बातों का ध्यान रखें, आपको भोलेनाथ की कृपा मिलेगी

Maha Shivaratri  व्रत कथा – शिवरात्रि की कहानी

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