पुणे में 19 जनवरी 1990 को पुणे, महाराष्ट्र में रजनीश ‘ओशो’ का निधन हुआ। शहर के कोरेगांव पार्क में अपने मेडिटेशन रिसॉर्ट में वे अपने अंतिम दिन बिताते रहे। हम आज आपको उनकी जीवनी से कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं। अपने पुनर्जन्म की कहानी बताई..।
OSHO ने अपने प्रशंसकों को बताया कि यह उनका पुनर्जन्म है। उनका दावा था कि वे 750 साल पहले तिब्बत में जन्मे थे।
- वे वहाँ एक विशिष्ट साधना कर रहे थे, लेकिन उनकी जीवनकाल सिर्फ तीन दिन था, इसलिए उन्हें दोबारा जन्म लेना पड़ा।
जब ओशो पैदा हुआ, कोई नहीं रोया।
OSHO के जन्म के तीन दिनों तक वे न रोये, न मुंह से कोई आवाज निकली और न मां का दूध पिया।
- इसके बाद घरवालों ने एक वैध भी बुलाया, लेकिन सब कुछ ठीक था।
OSHO जब लगातार दो दिनों तक तैरते रहे..।
- OSHO को नहाना बहुत अच्छा लगता था और उन्हें तैरना बहुत अच्छा लगता था। सुबह पांच बजे उन्होंने ठंडे पानी से नहाया करते थे।
- उनके सहयोगी ने बताया कि ओशो एक बार नरसिंहपुर और गाडरवाड़ा के तैराकों की प्रतिस्पर्धा में भाग लिया था।
- जबकि किसी ने कहा कि रजनीश मेरे सामने तैरेगा, तो कुछ देर बाद एक तैराक डूब गया, जिसे बहुत मुश्किल से बचाया गया, जबकि रजनीश घंटों तक तैरते रहे और दो दिन तक लापता रहे।
- इस दौरान पुलिस ने भी आकर पूछताछ की, और तीसरे दिन रजनीश घर चले गए। जब पूछा गया कि कहां थे, तो उन्होंने मुस्कराकर कहा कि मैं सिर्फ तैरने में मग्न था।
OSHO को कॉलेज से निकाला गया था..।
- OSHO ने 1951 में हितकारिणी सिटी कॉलेज में एडमिशन लिया और 1953 तक पढ़ाई की, एक करीबी दोस्त ने एक इंटरव्यू में बताया।
- पढ़ाई के दौरान लॉजिक पर एक प्रोफेसर ने रजनीश से बहस की। रजनीश की बहस इतनी सटीक थी कि कक्षा में बैठे लगभग सत्तर विद्यार्थियों ने टेबल थपथपाकर तालियां मार दीं।
- फिर कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें फोन किया और कहा कि हालांकि हम अपने प्रोफेसर को निकाल नहीं सकते, लेकिन आपको छोड़ देना चाहिए और हम आपके सर्टिफिकेट और डिग्री में कुछ भी नहीं लिखेंगे जो आपको नुकसान पहुंचाएगा।
- इसके बाद डी.एन.जैन कॉलेज के प्रिंसिपल ने रजनीश को फोन किया और कहा कि मैं तुम्हें अपने संस्थान में एडमिशन दे सकता हूं लेकिन आप लॉजिक पीरियड नहीं देंगे। ओशो मान गए और पीरियड के दौरान कॉलेज के बाहर कुएं की पाटी पर अक्सर बैठे रहेते थे ।
एक दृष्टि ओशो पर..।
रजनीश का जन्म मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा गांव में हुआ था।
- OSHO पहले चन्द्र मोहन जैन था। पिता की ग्यारह संतानो में वे सबसे बड़े थे।
- उनके माता पिता बाबूलाल जैन थे, और उनकी मां सरस्वती जैन थीं, दोनों तेरापंथी जैन थे। वे अपने ननिहाल में सात वर्ष तक रहे।
— ओशो ने कहा कि उनकी नानी ने उनके विकास में बहुत कुछ किया है। उन्हें धार्मिक विचारधारा, पूरी स्वतंत्रता अवगत कराया गया और उन्मुक्तता रूढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा गया। - जब वे 7 वर्ष के थे, तब उनके नाना का निधन हो गया, और वे अपने माता पिता के साथ रहने के लिए “गाडरवाड़ा” चले गए।
- लैटिन शब्द “ओशैनिक”, जिसका अर्थ है “सागर में विलीन हो जाना”, शब्द का मूल है।
1960 के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ नाम से प्रसिद्ध हुए, 1970-80 के दशक में ‘श्री रजनीश’ नाम से प्रसिद्ध हुए और 1989 में ‘ओशो’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
ओशो ने फिलॉस्फी पढ़ाया था।
- OSHO ने फिलॉस्फी के अध्यापक थे । उनके द्वारा संस्थागत धर्म, समाजवाद और महात्मा गांधी की विचारधारा की आलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया।
- वे भी ‘काम’ के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के पक्षधर थे, जिसकी वजह से उन्हें पहले भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओं में ‘सेक्स गुरु’ के नाम से लिखा गया।
- ओशो ने बाएं हाथ से लिखना शुरू किया था । उनको कनाडा ड्राय सोडा को बहुत पसंद था।
- osho को गंध और धूल से एलर्जी थी। उनके लिए सोना असंभव था जब कहीं से भी बदबू आ रही हो । सुबह उठने पर चाय पीना उनकी बुरी आदत थी।
- ओशो चप्पल पहनना पसंद करते थे, जूते नहीं पहनते थे। वे समय के पाबंद रहे हैं।
मुंबई में शिष्यों का एक समूह
1970 में OSHO कुछ समय के लिए मुंबई में रुके, जहां उन्होंने ‘नव संन्यास’ का पाठ पढ़ाया और आध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह काम करना शुरू किया।
- अपनी देशनाओं में, उन्होंने रहस्यवादियों, फिलॉस्फरों और धार्मिक विचारधाराओं को पूरे विश्व में नया अर्थ दिया।
- 1974 में पुणे आने पर उन्होंने इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट की स्थापना की, जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लग।
1980 में ओशो ने ‘अमेरिका’ में अपने अनुयायियों के साथ मिलकर ‘रजनीशपुरम’ बनाया। - पुना osho आश्रम की जलके
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