Politics: भाषायी लोकतंत्र के नाम पर कांग्रेस अब हिंदी को प्रमुख भाषा बनाने की मांग कर रही है।
चुनावी अभियान में आरोप-प्रत्यारोप आम हैं। तमिलनाडु जैसे राज्य में प्रचार एक अलग मुद्दा बन जाता है। दक्षिणी क्षेत्रीय दल अपनी भाषायी अस्मिता को चुनावी अभियान में ही नहीं, आम दिनों में भी उठाते हैं। इस मामले में तमिलनाडु अग्रणी है। केंद्र सरकार और भाजपा जैसी पार्टियां अक्सर ऐसे अभियानों में निशाने पर रहती हैं। लेकिन उस कांग्रेस का नाम भी जुड़ गया है, जिसने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिंदी को देश की प्रमुख भाषा बनाने का अभियान चलाया था, जिससे भाषायी अस्मिता को चुनावी मुद्दा बनाया गया है।
Politics: कोयंबटूर की चुनावी सभा
कोयंबटूर की चुनावी सभा में राहुल गांधी ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी देश में एक ही भाषा चाहते हैं। यानी तमिलों के प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के खिलाफ हैं। इसके बारे में बहस होना स्वाभाविक है। भाजपा ने राहुल गांधी
भाषा को लेकर ऐसा बयान देने वाले पहले व्यक्ति राहुल गांधी नहीं हैं। केरल के तिरूवनंतपुरम से चुनाव लड़ रहे शशि थरूर ने भी चुनाव प्रचार में भाजपा पर ऐसे आरोप लगाए हैं। हालाँकि, केरल में हिंदी को लेकर तमिलनाडु की तरह व्यवहार नहीं हो रहा है, इसलिए उनके बयान को बहुत महत्व नहीं दिया गया। तमिलनाडु में हिंदीविरोधी आंदोलन पिछली सदी के आखिरी दशक तक चला गया, लेकिन केरल में नहीं।
चाहे राहुल हो या शशि थरूर, उनके बयानों का एकमात्र उद्देश्य है कि वे अपने मतदाताओं को इस आधार पर अपना समर्थन दें और उनका मत प्राप्त करें। लेकिन क्या ऐसे विभाजनकारी बयानों को चुना जाना चाहिए?
राजनीति हिंदी की राह में सबसे बड़ी बाधा रही है। वही स्थानीय लोगों को अपने लाभों और नुकसानों को देखते हुए कभी-कभी सहमत या असहमत बनाती है। महात्मा गांधी ने चाहा था कि आजाद भारत में केंद्रीय भाषा होगी। गुजराती बोलते हुए भी उन्हें लगता था कि हिंदी में ही शक्ति और संभावना है। हिंदी, हालांकि, स्वाधीन भारत के राजनीतिक दखल के कारण आधिकारिक रूप से प्रमुख भाषा नहीं बन पाई।
हिंदी विरोध को राजनीति ने अब एक नया बहाना खोज लिया है। भाषायी लोकतंत्र और बहुभाषिकता को बचाने के नाम पर उसका विरोध किया जाता है। यह दिलचस्प है कि विदेशी भाषा केंद्रीय भाषा के तौर पर स्वीकार्य हो सकती है, लेकिन अपनी हिंदी नहीं।
Politics: हिंदी के खिलाफ
तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी द्रमुक हिंदी घोषित रूप से हिंदी के खिलाफ है। वह हिंदी के खिलाफ हर अवसर पर बोलने से नहीं हिचकती। नई शिक्षा नीति के दौरान भी उसने आरोप लगाया कि हिंदी को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। द्रमुक इंडिया गठबंधन में महत्वपूर्ण है। लेकिन तमिलनाडु में प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह या योगी आदित्यनाथ हिंदी में बोलते हैं। उनकी बातें तमिल में अनुवादित होती हैं। हिंदी भाषी होने पर तमिल जनता धैर्य से इन नेताओं का भाषण नहीं सुनती। लेकिन मैं कभी नहीं जानता था कि तमिल लोग इन नेताओं की हिंदी बोली में रुचि रखते हैं।
कांग्रेस कह सकती है कि हिंदी के खिलाफ उसके नेताओं की भाषा थोपने की बात नहीं है। लेकिन स्वतंत्र भारत में हिंदी ही केंद्रीय भाषा है। ऐसे बयानों से राजनीतिक लाभ होता है, लेकिन भाषायी मानस को नुकसान होता है।
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Politics: दक्षिणी क्षेत्रीय दल अस्मिता का मुद्दा उठाने से नहीं चूकते, विरोध को हवा दे रही कांग्रेस
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