Ram Mandir :श्रीराम इक्ष्वाकु की 63वीं पीढ़ी में पैदा हुए। महाराज अनरण्य २२वीं पीढ़ी में जन्मे थे। रावण ने उन पर हमला किया। उनका साहसिक संघर्ष असफल रहा। इस युद्ध में अनरण्य को वीरता मिली। विजय के दंभ में चूर रावण वापस अनरण्य का दरबार में इन स्तंभों को विजय की स्मृति में लेता चला गया।
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Ram Mandir कसौटी के स्तंभों की महत्व
कसौटी के स्तंभों की महत्वपूर्ण-निर्णायक भूमिका रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में है। राम मंदिर की लंबी यात्रा में इन स्तंभों की अलग पहचान हुई, हालांकि ये स्तंभ मंदिर के महत्वपूर्ण, भव्य और आस्था के शीर्ष केंद्र के रूप में प्रसिद्ध थे।
Ram Mandir कसौटी के स्तंभों की विश्वसनीय
आज भी ये स्तंभ राम मंदिर के सबसे पुराने और विश्वसनीय साक्ष्य के रूप में सुरक्षित हैं। लेकिन उनकी संख्या सीमित है। आज भी रामजन्मभूमि परिसर में इस श्रृंखला के सात स्तंभ सुरक्षित हैं। इन स्तंभों को श्रीराम से पहले भी बनाया गया है।
श्रीराम इक्ष्वाकु की 63वीं पीढ़ी में पैदा हुए। महाराज अनरण्य २२वीं पीढ़ी में जन्मे थे। रावण ने उन पर हमला किया। उन्होंने वीरतापूर्वक विरोध किया, लेकिन सफल नहीं हुए। इस युद्ध में अनरण्य को वीरता मिली। विजय के दंभ में चूर रावण वापस लौटते समय अनरण्य का दरबार कसौटी के जिन प्रतिष्ठापरक स्तंभों पर खड़ा था, उन्हें विजय की स्मृति में लेता चला गया।
Ram Mandir रामायण और संस्कृत ग्रंथ
रामायण और संस्कृत ग्रंथ राम-हनुमान संवाद के अनुसार, ये स्तंभ स्वयं देव शिल्पी विश्वकर्मा ने बनाए थे। अयोध्यावासी इन प्रतिष्ठापरक स्तंभों को कभी नहीं भूला सकते थे. श्रीराम ने लंका पर जीत हासिल की तो माता सीता के साथ वह स्तंभ भी वापस ले आए, जिसे रावण ने अपने दरबार में लगाया था।
Ram Mandir स्तंभों
बाद में कुश ने पिता श्रीराम की जन्मभूमि पर इन स्तंभों को भीषण बाढ़ से ध्वस्त हो चुकी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। कई युगों बाद और आज से लगभग 2100 वर्ष पूर्व, कसौटी के ये स्तंभों की संख्या 84 थी. हालांकि, पहले इनकी संख्या का अनुमान करना मुश्किल है।
Ram Mandir पुनर्निर्माण
संपूर्ण अयोध्या के साथ-साथ राम मंदिर के पुनर्निर्माण का श्रेय भी भारतीय लोककथाओं के नायक विक्रमादित्य को दिया जाता है। विक्रमादित्य ने ऐसा विशाल और सुंदर मंदिर बनाया, जो हजारों वर्षों तक स्मरणीय रहेगा। उन्होंने कसौटी के स्तंभों को भी नहीं छोड़ा और उन्हें जिस मंदिर में बनाया गया, उसमें उनका प्रयोग किया।
Ram Mandir शासक जयचंद का कनेक्शन
12वीं शताब्दी में गहड़वाल वंशीय शासक जयचंद ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार कराया, लेकिन कुछ भी बदलाव नहीं हुआ और विक्रमादित्य के समय प्रयोग किए गए कसौटी के स्तंभ ज्यों के त्यों रहे। मंदिर का शिखर एक मार्च 1528 को मुगल सेनापति मीरबाकी के हमले से गिर गया, लेकिन कसौटी के स्तंभ खड़े रहे। ढांचा, जिसे मस्जिद का रूप दिया गया, इस सत्य का परिचायक था।
कसौटी के स्तंभ छह दिसंबर 1992 को ध्वस्त होने तक काम करते रहे। इसके बावजूद, इस ढांचे में केवल चौदह कसौटी स्तंभ ही प्रयोग किए जा सकते थे। शेष सत्तर स्तंभों का अनुमान है कि मीर बाकी के हमले के बाद से ही मलबे में दब गए होंगे, और उनमें से कुछ को दूसरे स्थान पर ले जाकर इस्तेमाल किया गया होगा।
Ram Mandir के महंत
महंत रामदास ने निर्मोही अखाड़ा के पंच के रूप में विवादित ढांचे और उसमें लगाए गए स्तंभों को निकट से देखा और याद किया कि इन स्तंभों में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी उत्कीर्ण थीं. इन स्तंभों की स्थापत्य शैली ने भी इन मूर्तियों की वास्तविकता पर से पर्दा हटाया। इससे निष्कर्ष निकालना आसान हो गया कि कथित बाबरी मस्जिद को मंदिर की आधारभूमि पर बनाया गया था, न कि कोई मौलिक ढांचा।
छह दिसंबर 1992 को रामजन्मभूमि को विवादित ढांचे से बाहर निकाला गया, लेकिन ढांचे में स्थापित कसौटी के 13 स्तंभ खो गए. एक स्तंभ मिला, जो रामलला के अस्थाई मंदिर के सामने रखा गया।
Ram Mandir पूर्व समतलीकरण
मंदिर के पूर्व समतलीकरण के दौरान, जो मई 2020 में शुरू हुआ, इन 13 स्तंभों में से सात भी मिल गए। तब से ये स्तंभ रामजन्मभूमि परिसर में सुरक्षित रखे गए हैं। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का लक्ष्य 1528 से पहले राम मंदिर का साक्ष्य देने वाले स्तंभों को संग्रहालय में दिखाना है।
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