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  • Deepika Padukone Wear Hijab दीपिका पादुकोण हिजाब पहनने पर ट्रोल

    Deepika Padukone Wear Hijab दीपिका पादुकोण हिजाब पहनने पर ट्रोल

    Deepika Padukone Wear Hijab अबू धाबी की एक टूरिज़्म एड में हिजाब पहने दिखायी देने के बाद दीपिका पादुकोण ट्रोल हुईं, लेकिन उनके फैंस ने कहा कि उन्होंने हमेशा स्थानीय संस्कृति और सम्मान की दिशा में कदम उठाया है। जानिए इस विवाद की पूरी कहानी।

    बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण इस समय सोशल मीडिया चर्चा का विषय बनी हुई हैं, जब उन्होंने अबू धाबी टूरिज़्म विज्ञापन में एक मुस्लिम परिधान (अबाया + हेडस्कार्फ़) पहना देखा गया। इस लुक को कुछ नेटिज़न्स ने ‘हिजाब’ नाम दिया और उन्हें ट्रोल किया गया।

    Deepika Padukone Wear Hijab
    Deepika Padukone Wear Hijab

    विज्ञापन में दीपिका पादुकोण और उनके पति रणवीर सिंह अबू धाबी के प्रसिद्ध शेख जायद ग्रैंड मस्जिद और अन्य ऐतिहासिक झरोखों की खूबसूरती को दिखाते हुए नजर आये। इस दौरान दीपिका ने ऐसा परिधान पहना जिसमें सिर और हाथ छूटे हुए थे, बाकी शरीर ढंका हुआ था।

    कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाया कि क्या यह ‘माय चॉइस’ (My Choice) जैसी महिलाओं की स्वतंत्रता की वकालत करने वाली उनकी पूर्व परियोजनाओं की उपेक्षा नहीं है। विशेष रूप से उनका वो प्रोजेक्ट जिसमें उन्होंने कहा था कि महिलाओं को यह तय करने का हक है कि उन्हें क्या पहनना है — बिंदी लगाना हो या नहीं — और अब इस विज्ञापन पर उन्हें परिधान के चुनाव के चलते आलोचना झेलनी पड़ रही है।

    Deepika Padukone Wear Hijab
    Deepika Padukone Wear Hijab

    दीपिका के प्रशंसकों ने उनका जमकर बचाव किया

    कई लोगों ने यह तर्क दिया कि किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक स्थल पर जाने से पहले वहां के नियमों का पालन करना सम्मान का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि जब वह मंदिरों में बहन जाती हैं, तो भी पारंपरिक और उपयुक्त परिधान पहनती हैं। यही परिधान उन्होंने अबू धाबी के मस्जिद परिसर में पहन लिया — इसका मतलब यह नहीं कि वे अपनी व्यक्तिगत आज़ादी छोड़ रही हों, बल्कि यह एक निवेदन था कि वह स्थानीय संस्कृति और धार्मिक प्रस्थान (dress code) का सम्मान कर रही हैं।

    एक अन्य प्रशंसक ने लिखा है, “यह दीपिका है जब वह मंदिर जाती हैं — उन्होंने हमेशा भारत की संस्कृति का सम्मान किया है। इस विज्ञापन में उन्होंने जो कुछ पहना, वह उस स्थान और संस्कृति के अनुरूप था।”

    Deepika Padukone Wear Hijab
    Deepika Padukone Wear Hijab

    वहीं आलोचकों की राय यह रही कि कलाकार को हर जगह एक ही पैमाना लागू करना चाहिए — चाहे यह भारतीय संस्कृति हो या विदेशी परिदृश्य। कुछ ने कहा कि यदि विज्ञापन में मुसलमानों के धर्मस्थल को प्रमोट कर रही हो, तो भारतीय संस्कृति/धर्मों के प्रति भी समान संवेदनशीलता होनी चाहिए।

    विज्ञापन में चर्चित ‘अबाया’ और ‘हिजाब’ के अंतर की भी चर्चा हुई — कई स्रोतों ने स्पष्ट किया है कि दीपिका ने जो वस्त्र पहना, वो हिजाब नहीं बल्कि अबाया है, जो शरीर के अधिकांश भाग को ढकने वाला परिधान है।

    अभी दीपिका पादुकोण या अबू धाबी के टूरिज़्म विभाग ने इस पूरे विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।

    इस घटना ने साक्ष्य प्रदान कर दिया है कि भारत जैसे विविध सांस्कृतिक और धार्मिक देश में सार्वजनिक व्यक्ति और कलाकारों के हर कदम पर सोशल मीडिया पर निगाह बनी रहती है। उनकी पोशाक, उनके निर्णय, उनके विज्ञापन — सब कुछ चर्चा का विषय बन जाता है। इस विवाद ने यह भी दिखाया कि आजकल कला और प्रचार के बीच संतुलन खोजने में विवाद हो सकते हैं, खासकर जब संस्कृति और धर्म जुड़ा हो।



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  • Muhnochwa Real Story: लाल आंखों वाला प्राणी या सिर्फ अफवाह? जानिए ‘मुंहनोचवा’ की कहानी, जिसने गाँवों में फैलाई थी दहशत

    Muhnochwa Real Story: लाल आंखों वाला प्राणी या सिर्फ अफवाह? जानिए ‘मुंहनोचवा’ की कहानी, जिसने गाँवों में फैलाई थी दहशत

    Muhnochwa Real Story: 2002 के उत्तर प्रदेश-बिहार के ग्रामीण इलाकों में अचानक उभरी अफवाह ‘मुंहनोचवा’ ने रातों की नींद उड़ा दी। कुछ कहते थे लाल-पीली रोशनी वाला प्राणी, कुछ कहते थे हमले करता है मुंह नोच-नोच कर। सच क्या था, और कितनी अफवाह — पढ़िए पूरी कहानी।

    क्या मुंहनोचवा सच था या सिर्फ खौफ की कहानी

    Muhnochwa Real Story 2000 के दशक की शुरुआत में उत्तर प्रदेश और बिहार के कई गाँवों में एक अजीब-ओ-गरीब खौफ फैल गया, जिसका नाम था मुंहनोचवा। ये नाम सुनते ही लोगों की रूह कांप उठती थी। कुछ कहते थे कि ये कोई जीव है, कुछ कहते थे मशीन या कोई एलियन होता है, जबकि बहुसंख्यक का मानना था कि ये रात में उड़ने वाला प्राणी है, जिसमें लाल-पीली-हरी लाइट जलती है।

    गाँवों में शाम होते ही खौफ का माहौल बनने लगता। लोग घरों की खिड़कियाँ बंद कर लेते; छतों पर नींद करना ख़तरनाक लगने लगता। छोटे बच्चे और बूढ़े बाहर निकलने से डरते थे। कहा जाता है कि मुंहनोचवा उन पर हमला करता है: मुंह नोच (मुँह को नोच लेना) – यानी चेहरे या होंठ को काट लिया जाना।

    2002 के आसपास ऐसी कई रिपोर्टें प्रकाशित हुईं कि किसी गाँव में लोगों ने मुंहनोचवा को देखा, किसी ने डरना शुरू कर दिया। लो मे यह अफवाह थी कि ये उड़ने वाला प्राणी किसी की छत से टकरा कर भाग जाता है, कभी छतों के बीच उड़ता है, कभी पेड़ों के ऊँचे हिस्सों से झाँकता है।

    Muhnochwa Real Story
    Muhnochwa Real Story

    लेकिन अफ़वाह का दायरा बढ़ने के साथ कई सवाल भी उठने लगे। पहला ये कि कहीं कोई भरोसेमंद गवाह नहीं मिला जिसने साक्षात मुंहनोचवा से सामना किया हो। कई लोगों ने कहा कि उन्होंने ध्वनि सुनी, रोशनी देखी, पर कभी कोई पुष्टि नहीं हुई कि उसके पंजे या दांत द्वारा हमला हुआ हो।

    दूसरी ओर, प्रशासन और वैज्ञानिकों ने इनियों की जांच करने की कोशिश की। इलाकों की पुलिस रिपोर्टों में अक्सर कहा गया कि कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल रहा है। IIT कानपुर सहित कुछ वैज्ञानिक संस्थानों को भी खबर पहुंची, लेकिन उन्होंने भी कोई तथ्यात्मक दस्तावेजी प्रमाण नहीं पा सके।

    उन लोगों की आँखों में चमकती लाल रोशनी… और डर जो नींद हराम कर दे

    एक समाचार लेख में लिखा गया कि “दिन में लकड़सुंघवा, रात में मुंहनोचवा” — लोगों की कल्पनाएँ और डर मिलकर एक मिथक को जन्म देते हैं।

    कई गाँवों में तो रात के समय लोग समूह बना कर सतर्क रहते थे; कोई नींद से पहले घंटा-घंटा जागता; कुछ लोग साथ बैठ कर गीत-भजन करते ताकि डर कम हो सके। बाजारों में मुंहनोचवा की कहानियाँ बेची जाती थीं — किसने देखा, किसने बच निकलने की कहानी सुनाई, किसका बच्चा डर के कारण बाहर नहीं गया।

    Muhnochwa Real Story
    Muhnochwa Real Story

    लेकिन समय के साथ ये खौफ फीका पड़ गया। मीडिया के बढ़ते संदेह, प्रशासन की चेतावनियों और लोगों की समझ-बूझ बढ़ने से मुंहनोचवा प्रकरण कहीं मिटने लगा। जो उजाले और रोशनी रात में डरावनी दिखती थीं, वे अब तारों की चमक, बिजली के खंभों की रोशनी, या किसी ड्रोन की झिलमिलाहट बन कर रह गईं।

    आज मुंहनोचवा मुख्यतः एक लोककथा बन कर रह गया है — एक अफ़वाह की कहानी जिसे सुन-सुन कर कई रातों की नींद उड़ी थी। लेकिन इससे सीख ये मिली कि अंधविश्वास और संदेह कैसे समाज में भय का वातावरण बना सकता है।

    मुंहनोचवा सच हो या न हो, उसकी कहानी हमें सावधान करती है: किसी भी अफ़वाह को सबूतों से आंकें, डर को न बढ़ने दें, और विज्ञान और तर्क को अपनाएँ।


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  • Chauth Mata Mandir: इस करवा चौथ पर पति की लंबी आयु के लिए जाए सवाई का प्रसिद्ध मंदिर

    Chauth Mata Mandir: इस करवा चौथ पर पति की लंबी आयु के लिए जाए सवाई का प्रसिद्ध मंदिर

    सवाई माधोपुर का प्रसिद्ध Chauth Mata Mandir: पति की लंबी आयु और मनोकामना पूर्ति के लिए श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र

    राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित चौथ माता का मंदिर अपनी आस्था, मान्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ महिलाएं करवा चौथ और अन्य व्रतों के अवसर पर पति की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना के लिए दर्शन करने आती हैं।

    राजस्थान की धरती पर आस्था और परंपरा का संगम देखने को मिलता है। इन्हीं में से एक प्रमुख आस्था स्थल है — चौथ माता का मंदिर, जो सवाई माधोपुर जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर, एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर न केवल राजस्थान बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विश्वास का प्रतीक बन चुका है।

    मंदिर का इतिहास है पुराना

    कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 500 साल पहले राजा भीमसिंह द्वारा की गई थी। माना जाता है कि राजा को माता चौथ का स्वप्न आया था और माता ने उन्हें आदेश दिया था कि वे इस स्थान पर उनका भव्य मंदिर बनवाएं। तब से यह स्थान “चौथ का बरवाड़ा” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

    Chauth Mata Mandir
    Chauth Mata Mandir

    खास मौके पर लगता है मेला

    यह मंदिर खासतौर पर करवा चौथ व्रत के दौरान अत्यधिक प्रसिद्ध रहता है। इस दिन महिलाएं दूर-दूर से यहां आती हैं और अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की खुशियों के लिए माता की पूजा करती हैं। मंदिर के चारों ओर मेले जैसा माहौल रहता है — घंटों की लंबी कतारें, भक्ति गीत, आरती और दीपों की रोशनी से मंदिर का वातावरण अद्भुत हो उठता है।

    चौथ माता, जिन्हें देवी पार्वती का स्वरूप माना जाता है, अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं — ऐसा विश्वास है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल व्रती महिलाएं होती हैं, बल्कि परिवार समेत लोग माता के दर्शन कर जीवन में सुख-शांति की कामना करते हैं।

    Chauth Mata Mandir
    Chauth Mata Mandir

    मंदिर का निर्माण राजस्थानी स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण है। ऊँचाई पर बने इस मंदिर तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को सैकड़ों सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, लेकिन माता के प्रति श्रद्धा इतनी गहरी होती है कि लोग बिना थके चढ़ाई पूरी करते हैं। रास्ते में भक्त “जय चौथ माता की!” के जयकारे लगाते हैं।

    Chauth Mata Mandir
    Chauth Mata Mandir

    मंदिर परिसर से सवाई माधोपुर का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पहाड़ियों से दिखाई देने वाला नज़ारा भक्तों के मन को मोह लेता है।

    यहाँ प्रतिवर्ष करवा चौथ, महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि के दौरान विशेष आयोजन किए जाते हैं। इन अवसरों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुँचते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता चौथ से प्रार्थना करता है, उसकी हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

    चौथ माता मंदिर के पास कई छोटे मंदिर भी हैं, जहाँ शिव, गणेश और भैरव देवता की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर के नीचे क्षेत्र में बाजार और धर्मशालाएँ भी बनी हैं, जहाँ श्रद्धालु ठहर सकते हैं।

    कैसे पहुंचे चौथ माता के मंदिर

    मंदिर तक पहुँचने के लिए सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस आसानी से मिल जाती है। जो भक्त पैदल यात्रा करना चाहते हैं, वे पहाड़ी मार्ग से माता के जयकारों के साथ चढ़ाई पूरी करते हैं।

    माता चौथ का यह मंदिर नारी शक्ति, श्रद्धा और वैवाहिक जीवन की पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यहां का वातावरण भक्तिभाव से भरा होता है, जो हर आगंतुक के हृदय को शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।


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  • Morbi के हलवद में मोगल माता के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाले ‘भूवा’ का पर्दाफाश! विज्ञान जथा ने किया खुलासा

    Morbi के हलवद में मोगल माता के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाले ‘भूवा’ का पर्दाफाश! विज्ञान जथा ने किया खुलासा

    मोरबी जिले के हलवद में मोगल माताजी के नाम पर चमत्कार दिखाने और अंधविश्वास फैलाने वाले भूवा का पर्दाफाश हुआ। शिकायत के बाद विज्ञान जथा की टीम मौके पर पहुँची और वैज्ञानिक तर्कों से पूरे मामले का सच सामने लाया।

    Morbi गुजरात के मोरबी जिले के हलवद तालुका में अंधविश्वास की एक चौंकाने वाली घटना

    गुजरात के मोरबी जिले के हलवद तालुका में अंधविश्वास की एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। यहां एक व्यक्ति खुद को “मोगल माताजी का दूत” और “देवी का अवतार” बताकर लोगों को भ्रमित कर रहा था। वह गाँव में चमत्कार दिखाने और भविष्यवाणी करने का दावा करता था। स्थानीय लोगों ने जब इस पर शक जताया तो पूरे मामले की शिकायत विज्ञान जथा (Science Awareness Team) को की गई।

    Morbi
    Morbi

    फरियाद के बाद विज्ञान जथा की टीम मौके पर पहुँची और लोगों के बीच वैज्ञानिक तरीके से सच्चाई उजागर की। टीम ने यह साबित किया कि भूवा जो “चमत्कार” दिखा रहा था, वह किसी दैवी शक्ति का परिणाम नहीं, बल्कि रासायनिक और भौतिक प्रयोगों का खेल था।

    भूवा गाँव के मंदिर में रोज़ बैठता था और कहता था कि मोगल माताजी मेरे शरीर में विराजमान हैं। वह अपने अनुयायियों को यह दिखाता कि उसके हाथ से धुआँ या आग निकल रही है, या किसी व्यक्ति की बीमारी छूने मात्र से ठीक हो रही है। कुछ लोग उसकी बातों में फँसकर पैसे, गहने और चांदी का दान भी करने लगे थे।

    विज्ञान जथा टीम ने मौके पर जाकर यह दिखाया कि जिस “धुएँ” को चमत्कार बताया जा रहा था, वह दरअसल धूप, कपूर और केमिकल के मिश्रण से बनाया गया था। “रक्त के आँसू” जैसी घटनाएं भी रंगीन द्रव (chemical dye) से तैयार की गई थीं।

    टीम के एक सदस्य ने बताया —

    “हमारा उद्देश्य किसी की आस्था को ठेस पहुँचाना नहीं, बल्कि यह समझाना है कि विज्ञान से परे कोई जादू नहीं होता। लोग अपनी श्रद्धा रखें, लेकिन अंधविश्वास से बचें।”

    Morbi

    Morbi मोगल माता के नाम पर अंधविश्वास

    इस कार्रवाई के बाद पुलिस भी मौके पर पहुँची और भूवा के खिलाफ धोखाधड़ी, लोगों को गुमराह करने और अंधविश्वास फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया।

    गाँव के लोगों में भी अब जागरूकता फैल रही है। कई लोगों ने स्वीकार किया कि वे डर और अंधविश्वास में फँस गए थे, लेकिन अब उन्हें समझ आया कि श्रद्धा और अंधश्रद्धा में फर्क है।

    स्थानीय शिक्षकों और युवाओं ने विज्ञान जथा के साथ मिलकर गाँव में जागरूकता अभियान शुरू करने की घोषणा की है, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस तरह के छलावे का शिकार न बने।

    एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा —

    “हमने सोचा था कि माता का चमत्कार है, लेकिन अब समझ में आया कि असली शक्ति हमारे ज्ञान और सोच में है।”

    इस पूरे घटनाक्रम ने यह संदेश दिया है कि अंधविश्वास का अंत केवल विज्ञान और तर्क से ही संभव है। समाज में अंधश्रद्धा को मिटाने के लिए शिक्षा, जागरूकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण बेहद जरूरी है। हलवद की यह घटना पूरे राज्य के लिए एक सीख है कि श्रद्धा जरूरी है, लेकिन अंधश्रद्धा नहीं।


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  • Bihar Chunav 100 साल की उम्र… लेकिन लोकतंत्र के लिए दिल अब भी जवान!

    Bihar Chunav 100 साल की उम्र… लेकिन लोकतंत्र के लिए दिल अब भी जवान!

    Bihar Chunav “चुनाव 2025 में बिहार के शताब्दी पार मतदाताओं की भागीदारी दिखाती है लोकतंत्र की जिंदा शक्ति। उम्र भले 100 पार हो, लेकिन आज भी वे गर्व से कहेंगे — ‘मैं वोट डालूंगा!’”

    बिहार — 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक है और इस बार भी एक बात पूरे चुनाव मैदान में चर्चा का विषय बनी हुई है — 100 वर्ष से अधिक आयु के मतदाता, जो आजादी के साक्षी रहे हैं, फिर से बूथों की ओर लौटेंगे और अपनी वोटिंग की शक्ति दिखाएंगे।

    चुनाव आयोग की प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग 7.4 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें से कई मतदाता ऐसे हैं जो शताब्दी की दहलीज पार कर चुके हैं — इन्होंने आजादी, विभाजन, लोकतंत्र की चुनौतियाँ, आपातकाल और कई मोड़ देखे हैं। हालाँकि उम्र अधिक हो, लेकिन उनमें राजनीति और देश के प्रति एक अटूट संकल्प अभी भी कायम है।

    85 वर्ष से अधिक उम्र वाले 4.4 लाख मतदाता

    “जब मैं भारत विभाजन देखा, आजादी मिली, उसने हमारा जीवन बदला। अब भी वोट नहीं डालूंगा तो क्या युग बदल जाएगा?” — यह सवाल उन बुजुर्गों में से एक का है, जिन्होंने अधिकांश जीवन राजनीतिक बदलावों और सामाजिक संघर्षों को नजदीक से देखा है। बूथों तक जाना आसान नहीं है, लेकिन अक्सर उनके साथ परिवार या सामाजिक कार्यकर्ता सहारा देते हैं।

    Bihar Chunav लोकतंत्र के गवाह हैं ये मतदाता

    ये मतदाता केवल संख्या नहीं हैं — वे इतिहास, अनुभव और जनादेश का प्रतीक हैं। उनके वोट की प्रेरणा युवा एवं मध्यम उम्र के मतदाताओं को भी असर देती है। सोशल मीडिया पर जब 100-साल से ऊपर के बुजुर्गों की वोटिंग तस्वीरें साझा की जाती हैं, तो जनता में एक गर्व और उत्साह का भाव पैदा होता है — यह दिखाती है कि लोकतंत्र में उम्र की सीमा नहीं होती।

    लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। मतदान केंद्रों तक पहुंचने की जटिलताएँ, स्वास्थ्य संबंधी अड़चनें, पहचान-पत्रों की प्रक्रिया और अन्य दिक्कतें इन बुजुर्ग मतदाताओं के लिए बड़ा रोड़ा साबित हो सकती हैं। चुनाव आयोग ने इस बार सुनिश्चित किया है कि बूथों पर सहायक कर्मचारी मौजूद हों और विशेष व्यवस्था हो, ताकि ऐसे लोगों को मतदान का अवसर न छूटे।

    Bihar Chunav
    Bihar Chunav

    40 साल बाद दो फेज में होंगे चुनाव

    राजनीतिक दल भी इस “शताब्दी पार मतदाता” पर नजर बनाए हुए हैं। क्योंकि उनकी वोटिंग भागीदारी न केवल संवेदनशील मुद्दों पर संदेश देती है, बल्कि यह चुनावी रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकती है। कुछ दलों ने विशेष कैंपेन भी शुरू किए हैं — स्वास्थ्य सहायता केंद्रों से लेकर घर-घर संपर्क अभियान — ताकि इन बुजुर्ग मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाया जाए।

    जहाँ एक ओर राजनीतिक पार्टियाँ और चुनाव आयोग सक्रिय हैं, वहीं नागरिक समाज और सामाजिक संगठन भी इस दिशा में जुटे हैं। वृद्धजन कल्याण समितियां, वृद्धाश्रम, और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर वृद्ध मतदाताओं की सहयात्रा सुनिश्चित कर रहे हैं — चाहे यह वाहन की व्यवस्था हो, पहचान दस्तावेजों की सहायता हो या बूथ तक पहुँचने का मार्ग हो।

    इन 100 पार मतदाताओं की भागीदारी, केवल एक व्यक्तिगत कर्तव्य नहीं है — यह एक सामूहिक संदेश है कि लोकतंत्र की उदारता, नागरिक की सक्रियता और समाज की जिम्मेदारी उम्र से परे हैं। यह कहने जैसा है कि “हम बूढ़े हो सकते हैं, लेकिन हमारी आवाज सुनी जाएगी।”

    22 साल बाद बिहार में हुआ SIR

    जब यह वोटिंग प्रक्रिया पूरी होगी और मतगणना की खबरें सामने आएँगी, तब यह सवाल निहायत गंभीर हो जाएगा — क्या इस बार उनके वोट ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दिशा तय की, या सिर्फ प्रतीकात्मक स्वरूप में ही रहा? लेकिन एक बात तय है — इस चुनाव में 100 पार मतदाता एक सम्मानित और जीवंत भूमिका निभा रहे हैं।

    वोटिंग दिवस पर हम न केवल नए सरकार चुनेंगे, बल्कि उन बुजुर्गों के संघर्ष और संकल्प को भी सम्मान देंगे जिन्होंने जिंदगी की आलम से होते हुए भी लोकतंत्र के इस पर्व में अपनी उपस्थिति पक्की कर ली है।



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  • Grah Gochar दिवाली के बाद बदल जाएगी किस्मत! शनि होंगे मार्गी और गुरु करेंगे वक्री गोचर

    Grah Gochar दिवाली के बाद बदल जाएगी किस्मत! शनि होंगे मार्गी और गुरु करेंगे वक्री गोचर, इन राशियों पर बरसेगी कृपा

    Grah Gochar शनि ग्रह जल्द ही मार्गी और गुरु (बृहस्पति) वक्री चाल में आने वाले हैं। यह ग्रह परिवर्तन दिवाली के बाद कई राशियों के जीवन में बड़ा बदलाव लाएगा। जानिए किन जातकों की किस्मत चमकेगी और किसे मिलेगा कर्मों का फल।

    Grah Gochar शनि और गुरु का गोचर: दिवाली के बाद बड़ा ज्योतिषीय परिवर्तन

    अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर की शुरुआत तक ग्रहों की स्थिति में बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा। कर्मफलदाता शनि देव (Saturn) जो लंबे समय से कुंभ राशि में वक्री अवस्था में थे, अब मार्गी होने जा रहे हैं, जबकि गुरु बृहस्पति अपनी चाल बदलकर वक्री गोचर में प्रवेश करेंगे।

    यह ज्योतिषीय परिवर्तन दिवाली के बाद कई जातकों के जीवन में नई दिशा देने वाला साबित होगा। कुछ राशियों के लिए यह काल बेहद शुभ रहेगा तो कुछ को थोड़ा संयम और सावधानी रखनी होगी।

    शनि मार्गी क्या होता है?

    Grah Gochar
    Shani Grah Gochar

    जब शनि वक्री (retrograde) अवस्था से सीधी चाल (direct motion) में आते हैं, तो उसे “शनि मार्गी” कहा जाता है। इस समय कर्मों के फल तेजी से मिलने लगते हैं — जो मेहनत लंबे समय से रुकी थी, उसका परिणाम अब सामने आता है।

    शनि जब मार्गी होते हैं तो व्यक्ति की जिम्मेदारियाँ स्पष्ट होती हैं, कार्य-जीवन में स्थिरता आती है, और पूर्व के अधूरे कार्य पूरे होने लगते हैं।

    Grah Gochar गुरु का वक्री गोचर क्या लाएगा?

    Grah Gochar
    Guru Grah Gochar

    गुरु ग्रह (बृहस्पति) ज्ञान, धन, विवेक और भाग्य के प्रतीक हैं। जब यह वक्री चाल में आते हैं, तो व्यक्ति आत्ममंथन के दौर से गुजरता है।
    यह समय आत्म-विकास, आध्यात्मिकता और अधूरे लक्ष्यों की समीक्षा का होता है।

    गुरु की वक्री चाल से कुछ लोगों को धन संबंधी फैसलों में रुकावटें आ सकती हैं, लेकिन यह काल अंततः सुधार और प्रगति की नींव रखता है।

    किन राशियों पर होगा सबसे अधिक असर?

    मेष राशि (Aries)

    शनि के मार्गी होते ही करियर में ठहराव खत्म होगा। प्रमोशन या नौकरी बदलने के योग हैं। गुरु के वक्री गोचर से वित्तीय सुधार का रास्ता खुलेगा।

    वृषभ राशि (Taurus)

    शनि आपके कर्म भाव को प्रभावित करेंगे — मेहनत का पूरा फल मिलेगा। पारिवारिक रिश्तों में सुधार होगा। हालांकि गुरु के वक्री होने से खर्च बढ़ सकता है।

    मिथुन राशि (Gemini)

    विद्यार्थियों और नौकरी पेशा जातकों के लिए समय उत्कृष्ट रहेगा। रुके हुए काम गति पकड़ेंगे, लेकिन स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

    कर्क राशि (Cancer)

    गुरु की वक्री चाल भाग्य भाव को प्रभावित करेगी, जिससे आपको नई योजनाओं पर विचार करना चाहिए। शनि मार्गी होने से मानसिक शांति और आत्मविश्वास लौटेगा।

    सिंह राशि (Leo)

    शनि के मार्गी होते ही वैवाहिक और साझेदारी जीवन में सुधार आएगा। रुकी हुई डील पूरी हो सकती है। गुरु की वक्री चाल निवेश में सावधानी की सलाह देती है।

    कन्या राशि (Virgo)

    गुरु के प्रभाव से कार्यस्थल पर नेतृत्व क्षमता बढ़ेगी। शनि मार्गी होने से स्वास्थ्य में सुधार होगा और पुरानी चिंताओं से राहत मिलेगी।

    तुला राशि (Libra)

    यह समय रिश्तों को सुदृढ़ करने और आत्म-अनुशासन बढ़ाने का है। शनि मार्गी होने से परिवार में स्थिरता आएगी, जबकि गुरु वक्री चाल आत्मचिंतन का मौका देगी।

    वृश्चिक राशि (Scorpio)

    रुके हुए काम पूरे होंगे। पैतृक संपत्ति से जुड़ी समस्या सुलझ सकती है। गुरु वक्री चाल से आपको अपने लक्ष्यों को पुनः परखना चाहिए।

    धनु राशि (Sagittarius)

    आपके स्वामी ग्रह गुरु वक्री होंगे — इसका मतलब है आत्ममंथन और जीवन की प्राथमिकताओं पर विचार का समय। शनि मार्गी होने से वित्तीय उन्नति के योग।

    मकर राशि (Capricorn)

    शनि आपके स्वामी ग्रह हैं — मार्गी होने से जीवन में नई ऊर्जा और आत्मविश्वास आएगा। नौकरी या व्यापार में स्थिरता की उम्मीद रखिए।

    कुंभ राशि (Aquarius)

    आपकी राशि में शनि का मार्गी होना सबसे बड़ा परिवर्तन है। यह समय कठिन परिश्रम का है, लेकिन अब उसका मीठा फल मिलने लगेगा। गुरु की वक्री चाल मानसिक परिपक्वता बढ़ाएगी।

    मीन राशि (Pisces)

    गुरु आपके स्वामी ग्रह हैं — वक्री चाल आत्मविश्लेषण का समय लाएगी। आध्यात्मिक दृष्टिकोण और पारिवारिक जीवन में सुधार के योग हैं।

    दिवाली के बाद क्या होगा असर?

    दिवाली के तुरंत बाद यह ग्रह परिवर्तन शुभ संयोग बना रहा है।

    • नई योजनाओं की शुरुआत के लिए समय उत्तम || रुकी हुई संपत्ति या केस से राहत || नौकरी या प्रमोशन के अवसर || पुराने मित्रों या रिश्तेदारों से पुनर्मिलन || अध्यात्म की ओर झुकाव

    यह समय जीवन के हर क्षेत्र में “कर्म और आत्मविवेक” को केंद्र में रखता है। जो परिश्रम और ईमानदारी से चलते हैं, उनके लिए यह काल स्वर्णिम अवसर लेकर आ रहा है।

    शनि का मार्गी होना और गुरु का वक्री गोचर मिलकर एक संतुलन का समय लाते हैं — जहाँ कर्म और ज्ञान, दोनों साथ चलते हैं। जो जातक संयम, मेहनत और धैर्य से काम लेंगे, उनके जीवन में नई ऊँचाइयाँ तय हैं।



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  • 25 वर्ष की मैथिली ठाकुर: एक शो से कितनी कमाई और क्या कर सकती हैं बिहार विधानसभा चुनाव में धाँव

    25 वर्ष की मैथिली ठाकुर: एक शो से कितनी कमाई और क्या कर सकती हैं बिहार विधानसभा चुनाव में धाँव

    25 वर्ष की मैथिली ठाकुर लोकगायिका मैथिली ठाकुर 25 की उम्र में चर्चाओं में हैं — एक शो का मानधन सुनकर लोग हैरान हैं। साथ ही वो बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा में आई हैं। जानिए उनकी कमाई, राजनीतिक संभावनाएँ और आगे की राह।

    25 वर्ष की मैथिली ठाकुर
    25 वर्ष की मैथिली ठाकुर

    एक शो से कितनी कमाई करती हैं मैथिली ठाकुर?

    मैथिली ठाकुर की कमाई को लेकर सटीक आंकड़ा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और बुकिंग आधारित सूत्रों से आकलन किया जाता है कि एक कार्यक्रम (live show / stage concert) के लिए उनके मानधन की चर्चा “लगभग १० लाख रुपये” की जाती है। (कुछ स्रोतों में यह दावा किया गया है)

    वहीं, उनकी YouTube चैनल और अन्य ऑनलाइन माध्यमों से होने वाली कमाई भी एक महत्वपूर्ण आय स्रोत है। उनके YouTube चैनल पर अनुमानित मासिक आय $10,000 से लेकर $227,500 (लगभग ₹8–20 लाख या उससे अधिक) के बीच बताई जाती है।

    ब्रांड कोलैबोरेशन या प्रमोशनल पोस्ट के लिए भी कंपनियाँ उनसे फीस मांगती हैं — रिपोर्ट्स में बताया गया है कि

    • Shorts के लिए ₹1 लाख से ₹1.2 लाख तक
    • Dedicated Brand Video के लिए ₹3.5 लाख से ₹4 लाख
    • Integrated Brand Video के लिए ₹1.5 लाख से ₹2 लाख तक
      क्च शुल्क वह ले सकती हैं I

    इस तरह, उनके पास शो मानधन, डिजिटल प्लेटफॉर्म की आमदनी और ब्रांड प्रमोशन से आय के कई स्तंभ हैं।

    क्या मैथिली ठाकुर लड़ सकती हैं बिहार विधानसभा चुनाव?

    इस समय मीडिया में यह चर्चा तेज़ है कि मैथिली ठाकुर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उतर सकती हैं। उन्होंने भाजपा के नेताओं विनोद तावड़े और नित्यानंद राय से मुलाकात की है — जिससे यह अटकलें और मजबूत हो गई हैं।

    मैथिली ने मीडिया से कहा है कि उन्होंने इन चर्चाओं को देखा है और कहा है कि उनका “गाँव से जुड़ाव” है। अगर उन्हें टिकट मिले, तो वह अपने गाँव की विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहेंगी। हालाँकि, उन्होंने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि उन्होंने टिकट स्वीकार कर लिया है या पार्टी में शामिल हो गई हैं।

    वहीं चुनाव आयोग ने उन्हें पहले ही बिहार की राज्य आइकन (State Icon) के रूप में नामित किया है, जो जनता में मतदाता जागरुकता बढ़ाने का काम करती है। यह उनकी सामाजिक छवि और राजनीतिक संभावनाओं को बढ़ाता है। इसलिए, यदि राजनीतिक दल उन्हें स्वीकारें और उन्हें उपयुक्त टिकट दें, तो उनके पास विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना है — पहले चरण में अपनी लोकप्रियता, फ़ॉलोइंग और जनसमर्थन वह काम में ले सकती हैं।

    25 वर्ष की उपलब्धियाँ और राजनीतिक संभावनाएँ

    मैथिली ठाकुर का नाम आज सोशल मीडिया और मीडिया चर्चा में इस वजह से है कि उनकी गायकी ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई है, और अब वे राजनीति की ओर झुकाव दिखा रही हैं। 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने लोकगीत, भक्ति गीत, क्लासिकल तथा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बहुत मजबूत पहचान बनाई है।

    सबसे पहले, उनकी कमाई: एक लाइव कार्यक्रम का मानधन अक्सर मीडिया रिपोर्टों में लगभग ₹10 लाख बताया गया है, हालांकि यह संख्या अप्रमाणित हो सकती है। YouTube और अन्य डिजिटल माध्यमों पर उनकी आय भी मिलती है — अनुमान है कि उनकी मासिक YouTube आमदनी $10,000 से $227,500 तक हो सकती है, जो भारतीय रुपये में लाखों होती है।

    ब्रांड संबंधित पोस्ट और कोलैबोरेशन में भी उन्हें अच्छी फीस मिलती है: शॉर्ट वीडियो के लिए ₹1-1.2 लाख, डेडिकेटेड वीडियो ₹3.5-4 लाख और इंटीग्रेटेड वीडियो ₹1.5-2 लाख तक की चर्चा होती है। ये आंकड़े यह दिखाते हैं कि मैथिली सिर्फ गायिका नहीं बल्कि एक ब्रांड हैं — जिनकी साख, पहुँच और लोकप्रियता उन्हें कमाई के विविध मार्ग देती है।

    इसी बीच, चुनाव की चर्चा उनके जीवन में नया मोड़ ला रही है। बिहार 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले यह कयास लगाए जा रहे हैं कि मैथिली ठाकур राजनीति में कदम रख सकती हैं।

    25 वर्ष की मैथिली ठाकुर
    25 वर्ष की मैथिली ठाकुर

    उनकी भाजपा नेताओं से मुलाकात और बातचीत ने यह संकेत दिया है कि पार्टी उन्हें मान सकती है। उन्होंने कहा है कि अगर उन्हें टिकट मिला, तो वे अपने गाँव की विधानसभा सीट से लड़ना चाहेंगी। लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि अभी कोई फाइनल फैसला नहीं हुआ है।

    उनकी सामाजिक छवि को ध्यान में रखना होगा: चुनाव आयोग ने उन्हें राज्य आइकन नामित किया है, जो मतदाता जागरुकता गतिविधियों को बढ़ावा देती है। इस भूमिका से उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में पहचान मिली है और यह संकेत देती है कि जनसमर्थन तय करना उनका मजबूत बिंदु हो सकता है।

    यदि मैथिली चुनाव लड़ती हैं, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना होगा — राजनीतिक जमीन तैयार करना, लोक समर्थन जुटाना, संसाधन प्रबंधन करना और पार्टी संगठन के बीच अपने प्रभाव को स्थापित करना। लेकिन उनकी युवा ऊर्जा, लोकप्रियता और सामाजिक साख उन्हें बढ़त दे सकती है। उनकी कहानी यह बताती है कि कला और लोकप्रियता राजनीति में कैसे पुल बना सकती है। अभी यह कहना मुश्किल है कि वे चुनाव लड़ेंगी या नहीं — लेकिन संभावना और चर्चा काफी मजबूत है।



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  • October Weather नॉर्थ इंडिया में मौसम ने ली करवट: बारिश और ठंड ने कर दिया सूरज फीका

    October Weather नॉर्थ इंडिया में मौसम ने ली करवट: बारिश और ठंड ने कर दिया सूरज फीका

    October Weather उत्तरी भारत में मंगलवार की बारिश और हवाओं ने तापमान में भारी गिरावट ला दी है। सूर्य हल्का दिख रहा है और मौसम का मिजाज अचानक बदल गया है। जानिए कारण, असर और आगे का अनुमान।

    मौसम ने बदली चाल: नॉर्थ इंडिया में ठंड की दस्तक

    पिछले कुछ दिनों से उत्तर भारत में अस्थिर मौसम ने सबको हैरान कर दिया है। दिल्ली–एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश के बाद तापमान में तेज गिरावट आई है। सड़कों पर जलजमाव देखने को मिल रहा है, और सूरज अब फीका पड़ता दिख रहा है।

    October Weather
    October Weather

    विशेष रूप से लुधियाना जैसे शहरों में हवा और बारिश ने गैप बना दिया — अधिकतम तापमान 25.6 °C पर दर्ज, जो मौसमी औसत से करीब 7–8 डिग्री कम है। चंडीगढ़ में 33.3 मि.मी. बारिश दर्ज हुई — यह अक्टूबर का रिकॉर्ड-तोड़ दिन रहा है।

    उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तो बर्फबारी भी हुई है, और प्रशासन ने भूस्खलन की चेतावनी जारी की है, खासकर टिहरी, चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में।

    October Weather सूरज क्यों हल्का दिख रहा है?

    1. घने बादल और बारिश की आवृत्ति
      तेज हवाओं और पश्चिमी विक्षोभों की वजह से बादल लगातार आते रहे हैं, जिससे सूरज की किरणें ज़मीन तक नहीं पहुँच पा रही हैं।
    2. नमी और वायुमंडलीय घनत्व
      बारिश से वायुमंडल में नमी बढ़ी है, जिससे हवा में नमी-कणों की अधिकता है। ये बिंदु-सौंदर्यकिरणों को छेदते या बिखेरते हैं, जिससे धूप कम तीव्र लगे।
    3. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance)
      एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ फिलहाल नॉर्थ इंडिया में मौजूद है, जो बारिश और मौसम की अस्थिरता को बढ़ा रहा है।
    4. तापमान का गिरना
      अधिकतम तापमान कम होने से धूप “कम गर्म” लगती है — यानी वो लोइंटेंसिटी के साथ आती है, जिससे महसूस होता है कि सूरज हल्का पड़ गया है।

    इस बदलाव का असर नागरिकों पर

    • रुका हुआ काम, भीगने की आशंका: लोगों को बारिश के बीच बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।
    • यातायात अस्त-व्यस्त: दिल्ली–एनसीआर में जलजमाव और ट्रैफिक जाम की खबरें लगातार आ रही हैं।
    • कृषि प्रभाव: फसलों पर बारिश का अधिक बोझ पड़ सकता है — किसानों को सावधानी बरतनी होगी।
    • स्वास्थ्य पर असर: सर्दी, खांसी, जुकाम जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
    • पर्यटन प्रभावित: पहाड़ी इलाकों में पहुंचने वाले पर्यटकों को मौसम की मार झेलनी पड़ सकती है।

    आगे का अनुमान और तैयारी

    मौसम विभाग (IMD) ने संकेत दिए हैं कि यह स्थिति थोड़ी देर तक बनी रह सकती है, फिर धीरे-धीरे बारिश का स्तर कम हो सकता है। खासकर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों और पंजाब, हरियाणा में अलर्ट जारी है।

    सुझाव:

    • बाहर जाते समय छाता या रेनकोट साथ रखें।
    • चलने-फिरने के लिए बार-बार मौसम अपडेट देखें
    • नेताओं व प्रशासन को जल निकासी, सड़क मरम्मत व्यवस्था सुधारनी होगी।
    • कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लें — समय पर फसल प्रबंधन जरूरी है।

    उत्तर भारत में इस बारिश और ठंड की अचानक वापसी ने मौसम की अनिश्चितता को दोबारा दिखाया है। सूरज की रोशनी अब पिछली तरह नहीं गुजर पा रही — बादल, नमी और वायुमंडलीय संरचना मिलकर इसे हल्का बना रहे हैं।

    हमारे लिए ज़रूरी है कि मौसम को समझें, तैयारी रखें और बदलावों के साथ सामंजस्य बैठाएँ — क्योंकि प्रकृति का मिजाज पल में बदलता रहता है।



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  • सुप्रीम कोर्ट में वकील ने किया हंगामा: CJI BR गवई पर जूता फेंकने की कोशिश, सुरक्षा में बढ़ाई गई सतर्कता

    सुप्रीम कोर्ट में वकील ने किया हंगामा: CJI BR गवई पर जूता फेंकने की कोशिश, सुरक्षा में बढ़ाई गई सतर्कता

    सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक वकील द्वारा मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अदालत में CJI BR बी. आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश का मामला सामने आया। गवई की पहचान एक अम्बेडकरवादी बौद्ध के रूप में होने के कारण सोशल मीडिया पर यह घटना चर्चा का विषय बन गई है।

    नई दिल्ली।
    भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक अभूतपूर्व घटना सामने आई है जहाँ एक अधिवक्ता ने न्यायालय की मर्यादा तोड़ते हुए न्यायमूर्ति बी. आर. गवई CJI BR गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। यह घटना उस समय हुई जब अदालत में एक सामान्य सुनवाई चल रही थी। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को काबू में ले लिया और अदालत की कार्यवाही कुछ समय के लिए रोक दी गई।

    सूत्रों के अनुसार, आरोपी की पहचान राकेश किशोर नामक अधिवक्ता के रूप में हुई है, जो दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत हैं। घटना के बाद कोर्ट परिसर में भारी सुरक्षा तैनात कर दी गई है और प्रारंभिक पूछताछ में पता चला है कि अधिवक्ता ने व्यक्तिगत वैचारिक असहमति के कारण यह कदम उठाया।

    CJI BR गवई कौन हैं

    न्यायमूर्ति बी. आर. गवई वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं। वे भारत के इतिहास में दूसरे ऐसे दलित पृष्ठभूमि के न्यायाधीश हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति का पद संभाला। गवई लंबे समय से सामाजिक समानता, संवैधानिक नैतिकता और न्यायिक सुधारों के पक्षधर माने जाते हैं।

    CJI BR उनकी विचारधारा डॉ. भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों से प्रेरित बताई जाती है और वे अम्बेडकरवादी बौद्ध परंपरा का पालन करते हैं। इस कारण सोशल मीडिया पर यह चर्चा तेज है कि क्या इस घटना का संबंध उनकी धार्मिक-दार्शनिक पहचान से है या फिर व्यक्तिगत असंतोष से।

    CJI BR
    CJI BR

    अदालत की प्रतिक्रिया और सुरक्षा व्यवस्था

    घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इस मामले को “सुरक्षा उल्लंघन और न्यायिक गरिमा पर हमला” बताया है। अदालत के भीतर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती बढ़ा दी गई है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नई गाइडलाइन्स तैयार की जा रही हैं।

    मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने घटना के बाद कहा कि, “न्यायपालिका असहमति को हमेशा सम्मान देती है, लेकिन हिंसा या अपमान का कोई स्थान नहीं है।”

    सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ

    घटना के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कुछ लोगों ने इसे “न्यायपालिका की गरिमा पर हमला” बताया, तो कुछ ने इसे “अम्बेडकरवादी विचारधारा के खिलाफ असहिष्णुता” का प्रतीक कहा।

    कई वरिष्ठ वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि अदालत की मर्यादा किसी भी हाल में टूटनी नहीं चाहिए, चाहे मतभेद कितने भी गहरे क्यों न हों। वहीं, कुछ उपयोगकर्ताओं ने यह भी कहा कि ऐसे कृत्य न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे को चोट पहुँचाते हैं।

    कानूनी कार्रवाई की तैयारी

    दिल्ली पुलिस ने आरोपी अधिवक्ता के खिलाफ धारा 186 (लोक सेवक के कार्य में बाधा डालना), धारा 353 (लोक सेवक पर हमला) और धारा 504 (उकसावे का अपराध) के तहत मामला दर्ज किया है।

    प्रारंभिक जांच में यह भी देखा जा रहा है कि क्या यह घटना सुनियोजित थी या आवेग में की गई हरकत। पुलिस ने आरोपी के सोशल मीडिया अकाउंट और ईमेल की भी जांच शुरू कर दी है ताकि उसके उद्देश्य का पता लगाया जा सके।

    यह घटना न केवल अदालत की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि भारत में विचारधारा और असहमति के बीच संतुलन की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है। न्यायपालिका लोकतंत्र का सबसे अहम स्तंभ है, और किसी भी असहमति को अभिव्यक्ति के संवैधानिक दायरे में रहकर ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

    यह आवश्यक है कि हम असहमति जताने के बजाय संवाद का रास्ता अपनाएँ — क्योंकि संविधान की आत्मा “न्याय, स्वतंत्रता और समानता” में निहित है, न कि हिंसक प्रतिक्रिया में।



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