Teacher Recruitment:

Teacher Recruitment: 69,000 शिक्षक भर्ती की समस्या क्यों जारी रहती है? कोर्ट के फैसले के बाद राजनीति शुरू हुई, CM योगी बैठक करेंगे

Uttar Pradesh

Teacher Recruitment: यूपी में 69 हजार शिक्षकों की नियुक्ति का मुद्दा अब ठंडा हो गया है। इस मामले में राजनीति गहरी हो गई है। योगी सरकार पर विपक्षी नेता ने सवाल उठाए हैं। रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस मुद्दे पर बैठक करेंगे।

6 साल से उत्तर प्रदेश में 69,000 बेसिक शिक्षक पदों पर भर्ती का विवाद चल रहा है। यह विवाद दो बार मेरिट लिस्ट जारी करने के बावजूद हल नहीं हो सका। अब इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने दोनों मेरिट लिस्ट को गलत ठहराया है। सरकार को नए सिरे से मेरिट जारी करने का आदेश दिया गया है। अब अगले कदम पर विचार है। आखिर भर्ती पर पूरा बहस है? यह समझना महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी बहस गहरी हुई है। राजनीतिक बहस शुरू हो चुकी है। इस मामले में योगी सरकार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से लेकर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव तक ने घेर लिया है।

रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस मामले पर चर्चा करेंगे।

Teacher Recruitment: कैसे शुरू हुई  प्रक्रिया भर्ती?

प्रदेश में सपा सरकार ने 1.37 लाख शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस समायोजन को रद्द कर दिया। नतीजतन, शिक्षकों के ये पद रिक्त हो गए। भाजपा की सरकार आने पर कोर्ट ने फिर आदेश दिया कि शिक्षकों के पद खाली हों। सरकार ने इसके जवाब में कहा कि यह पद अकेले नहीं भरा जा सकता। सरकार ने दो चरणों में 68,500 और 69,000 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले।

Teacher Recruitment: क्या हुआ?

5 दिसंबर 2018 को 69,000 शिक्षक भर्ती के लिए एक विज्ञापन जारी किया गया था।
4.71 लाख कुल आवेदन प्राप्त हुए।
5 जनवरी 2019 को परीक्षा हुई।
4.10 लाख लोगों ने परीक्षा में भाग लिया।
6 जनवरी को आदेश जारी किए गए कि आरक्षित वर्गों के लिए कम से कम 60% और अनारक्षित वर्गों के लिए कम से कम 65% अंक मिलने चाहिए।
1 जून 2020 को कट ऑफ लिस्ट या रिजल्ट जारी किया गया।

Teacher Recruitment: इससे विवाद शुरू हुआ

कट ऑफ लिस्ट की घोषणा के बाद ही बहस शुरू हुई। 1.47 लाख उम्मीदवारों की न्यूनतम अंकों की सूची जारी की गई। इसमें आरक्षित श्रेणी के 1.10 लाख लोग शामिल हुए। कुल 67,867 चयनितों की सूची प्रकाशित की गई। चयनित उम्मीदवारों में ओबीसी का मेरिट कट 66.73% और एससी का 61.01% था, जबकि सामान्य का मेरिट कट 67.11% था। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने इस लिस्ट पर शक व्यक्त किया और आरक्षण कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। उन्हें पता चला कि पूरी सूची में बेसिक शिक्षा अधिनियम 1981 और आरक्षण अधिनियम 1994 का पालन नहीं हुआ है।

आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों ने कहा कि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी के कट ऑफ से अधिक अंक नहीं मिलना चाहिए। परीक्षार्थियों ने दावा किया कि अधिक अंक पाने के बावजूद अभ्यर्थी को आरक्षित श्रेणी में नहीं गिना गया था। इस प्रकार, आरक्षित श्रेणी में 19,000 पदों पर घोटाला हुआ है। नियमों के अनुसार ओबीसी को 27 प्रतिशत के मुकाबले महज 3.86 प्रतिशत और एससी को 21 प्रतिशत के मुकाबले महज 16.2 प्रतिशत आरक्षण मिला है।

सरकार ने कहा कि सहायक शिक्षकों की लिखित परीक्षा एक भर्ती परीक्षा थी। इसमें पहले से ही निर्धारित आयु सीमा से न्यूनतम कट ऑफ तक की छूट दी गई है। ऐसे में आरक्षित अभ्यर्थी दोहरा लाभ नहीं प्राप्त कर सकते हैं। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने कहा कि बेसिक शिक्षा नियमावली कहती है कि लिखित परीक्षा एक अर्हता परीक्षा है और सरकार ने खुद कोर्ट में माना है। ऐसे ही बहस बढ़ी। पिछड़ा वर्ग आयोग की मांग करते हुए आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने धरना-प्रदर्शन किया। सरकार ने नेताओं और मंत्रियों से मुलाकात की और न्यायालय में भी अपील की।

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