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UP: यह दलित महावत हाथी पर सवार नहीं हो सका क्योंकि बसपा ने सबसे अधिक कुर्मी और इस जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा किया था।

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UP: भाजपा ने सीतापुर लोकसभा सीट पर एक बार भी “दलित कार्ड” नहीं चला। टिकट बसपा सोशल इंजीनियरिंग के सिद्धांत पर आधारित था। सबसे अधिक मुस्लिम और कुर्मी पर भरोसा जताया।

बसपा ने दलित वोट बैंक के सहारे राजनीति में गहरी पकड़ बनाने के बावजूद सीतापुर संसदीय सीट पर एक बार भी दलितों का पक्ष नहीं लिया है। यहां टिकट का आधार सोशल इंजीनियरिंग का है, जो बसपा के मुखिया ने अपनाया है। बसपा कभी-कभी मुस्लिमों पर दांव लगाती रही है।

इस बार बसपा ने डेढ़ दशक तक सीतापुर सीट पर काबिज रहने वाले पूर्व विधायक महेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाकर कई लक्ष्य रखे हैं। चार जून को बसपा का यह दांव कितना प्रभावी होगा पता चलेगा। 1989 में बसपा ने सीतापुर संसदीय सीट पर पहली बार चुनाव जीता था। BSP ने सय्यद नासिर को प्रत्याशी बनाया।

पहले ही चुनाव में हाथी ने 1,16,680 मतों से तीसरा स्थान हासिल किया। 1991 के चुनाव में बसपा के अजीज खान ने 35,670 मतों से पांचवां स्थान हासिल किया था। 1996 के चुनाव में बसपा ने प्रेमनाथ वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में बसपा ने एक बार फिर अपनी ताकत दिखाई।

बसपा का प्रत्याशी प्रेमनाथ 1,17,791 मतों से तीसरे स्थान पर रहे। 1998 में बसपा ने फिर से प्रेमनाथ पर भरोसा जताया। प्रेमनाथ वर्मा इस चुनाव में 1,88,954 मतों से विजेता रहे। भाजपा के जनार्दन मिश्र से 27,920 मतों के अंतर से बसपा ने यह चुनाव हार गया। 1999 में बसपा ने यहीं से जीत हासिल की।
इस बार भी सोशल इंजीनियरिंग का सिद्धान्त अपनाकर हाथी का महावत राजेश वर्मा बनाया गया। बसपा ने पहली बार सीतापुर सीट पर जीत हासिल की, जहां राजेश वर्मा ने एससी व पिछड़ा वर्ग के मतों से 2,11,120 वोट हासिल करते हुए हाथी को दिल्ली पहुंचा दिया।

2004 के चुनाव में भी राजेश वर्मा ने जीत हासिल की। 2009 के चुनाव में बसपा ने यहां से हाथी का महावत बदल दिया, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं ने पुराना इतिहास दोहराते हुए कैसरजहां पर फिर दांव खेला।
कैसरजहां ने मुसलमान व एससी वोट बैंक की मदद से जीत हासिल की। कैसरजहां को इस चुनाव में 2,41,106 मत मिले थे। 2014 में 3,66,519 मतों के बाद भी कैसरजहां चुनाव हार गईं। वे रनर थे। 2019 में बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला था।
बसपा-सपा गठबंधन ने नकुल दुबे को मैदान में उतारा। 4,13,695 मतों के साथ नकुल दुबे दूसरे स्थान पर रहे। बसपा इस बार चुनाव अकेले लड़ रही है। अब बसपा ने महेंद्र यादव को अपना प्रत्याशी घोषित किया, जो मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहा है।

UP: महेंद्र ने भाजपा और सपा में विभाजित करने की कोशिश की

बसपा पूर्व विधायक महेंद्र यादव के माध्यम से भाजपा और सपा को एकजुट करने का प्रयास करेगी। वास्तव में, 2017 में महेंद्र यादव बिसवां विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। 2022 में टिकट कटौती के बाद भी भाजपा में सक्रिय रहे। इसलिए वे भाजपा को विभाजित करने की कोशिश करेंगे। साथ ही, यादव जाति से होने के कारण सपा के पारंपरिक वोट बैंक को तोड़ने की हर संभव कोशिश की जाएगी।

UP: सोशल इंजीनियरिंग में खोज जीत की संभावना

बसपा की सोशल इंजीनियरिंग ने 1999 से 2009 तक सीतापुर सीट पर लगातार तीन बार जीत हासिल की है। तीन बार कुर्मी जाति के राजेश वर्मा और एक बार मुस्लिम जाति की कैसरजहां के सहारे हाथी ने सीतापुर से दिल्ली का सफर तय किया है। बसपा एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के सिद्धांत से जीत की उम्मीद कर रही है।

UP: एक बार ब्राह्मण कार्ड खेला और हार गया

2019 में बसपा ने सीतापुर सीट पर ब्राह्मण कार्ड भी खेला था। किंतु यह दांव कामयाब नहीं रहा। सपा से गठबंधन करने के बाद भी नकुल दुबे को एक लाख से अधिक मतों से करारी शिकस्त मिली।
इसलिए, सीतापुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 28.1% एससी-एसटी मतदाता हैं। बसपा का कैडर वोट बैंक माना जाता है यह वर्ग। इसके अलावा लगभग 27.9% पिछड़ा वर्ग, 23% सामान्य वर्ग और 21% मुस्लिम मतदाता हैं। बसपा दलित और पिछड़े मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।

UP: यह दलित महावत हाथी पर सवार नहीं हो सका क्योंकि बसपा ने सबसे अधिक कुर्मी और इस जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा किया था।

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