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Varanasi: साढ़े तीन सौ साल पुरानी परंपरा, जलती चिताओं के साथ महाश्मशान में टूटते रहे पांव के घुंघरू

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Varanasi: चैत्र नवरात्र की सप्तमी को महाश्मशान महोत्सव में नगरवधुओं का नृत्य देखने के लिए बहुत लोग आते हैं। इस पुरानी परंपरा को आज भी पालन किया जाता है।

रात भर वाराणसी की आदितीर्थ मणिकर्णिका पर जलती चिताओं के सामने नगरवधुओं के पांव के घुंघरू टूटते रहे। शवयात्रियों को बाबा मसाननाथ से मुक्ति की कामना के लिए रात भर नाचती, गुहार लगाती नगरवधुओं का नृत्य आश्चर्यजनक था। रात भर काशी की पुरानी प्रथा की लौ धधकती रही।

चैत्र नवरात्र की सप्तमी पर, महाश्मशान महोत्सव की अंतिम निशा में, बाबा को पंचमकार का भोग लगाकर तंत्रोक्त विधान से भव्य आरती की गई। Baba की घाटी में गुलाब, रजनीगंधा और अन्य सुगंधित फूल लगे हुए थे। चिताएं धधक रही थीं, जबकि नगर वधुएं डोमराज की मढ़ी के नीचे घुंघरुओं की झंकार बिखेरने की तैयारी कर रही थीं।

बाबा मसाननाथ से छुटकारा पाने की इच्छा से नगरवधूओं ने बाबा का भजन दुर्गा दुर्गति नाशिनी, दिमिग दिमिग डमरू कर बाजे, डिम डिम तन दिन दिन… से शुरू किया। ओम नमः शिवाय, मणिकर्णिका स्तोत्र, खेलें मसाने में होरी के बाद ठुमरी व चैती गाकर अपनी गीतांजलि बाबा के श्री चरणों में अर्पित की।

गायक जय पांडेय ने भक्तों को झूमने पर विवश कर दिया। अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता और व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने किया। बिहारी लाल गुप्ता, विजय शंकर पांडेय, संजय गुप्ता, दीपक तिवारी और अजय गुप्ता इस दौरान उपस्थित थे।

Varanasi: राजा मानसिंह ने प्रथा शुरू की

माना जाता है कि राजा मानसिंह, अकबर के नवरत्नों में से एक, ने प्राचीन नगरी काशी में भगवान शिव के मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। राजा मानसिंह इस अवसर पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम करना चाहते थे, लेकिन इस श्मशान में कोई भी कलाकार आने और अपनी कला का प्रदर्शन करने को तैयार नहीं हुआ।

काशी की नगरवधुओं को इसकी जानकारी हुई तो वे खुद श्मशान घाट पर इस उत्सव में नृत्य करने को तैयार हो गईं। इस दिन से, यह उत्सवधर्मी काशी की एकमात्र परंपरा बन गई। तब से आज तक, हर साल चैत्र नवरात्रि की सातवीं निशा पर यहां श्मशानघाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

Varanasi: साढ़े तीन सौ साल पुरानी परंपरा, जलती चिताओं के साथ महाश्मशान में टूटते रहे पांव के घुंघरू

ऐसा श्मशान घाट जहाँ हर वक्त जलती रहती है चिताएं ! | The Real Truth of Manikarnika Ghat

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