Vilayat Khan गायकी और हुनर। और आज हम उन्हें स्मरण कर रहे हैं। एक छोटे से उदाहरण से और बहाना है कि आज विलायत ख़ान का जन्मदिन है। देश स्वतंत्र नहीं हुआ था। भारत भी स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं हुआ था। और 1928 में। विलायत ख़ान विभाजित बंगाल में पैदा हुए। घर में ही संगीत प्रशिक्षण शुरू हुआ। पिता ने इनायत ख़ान दी। जो खुद उस समय के प्रसिद्ध सितार वादकों में से एक थे। आठ साल की उम्र छूते ही विलायत ख़ान ने पहला ट्रैक बनाया। ये उस समय की बात है जब संगीत इतना आसान और उपलब्ध नहीं था। साज बहुत महंगे थे और संगीत भी घरों-घरानों तक सीमित था।
पिता की मौत के बाद चाचा वाहिद खान ने सितार को पाला और मजबूत किया। इतना मजबूत था कि आगे चलकर कहा गया कि विलायत ख़ान की सितार नहीं बजती, बल्कि वह अपनी सितार से गाता है। गायकी अंग का सितार उनका था। तान-आलाप को सितार पर बजते हुए सुनते थे।
Vilayat Khan :सरकार या सरकारी लॉलीपॉप के सामने झुकेंगे नहीं
कहा कि मेरा घर इटावा में है। इटावा में कोई घर नहीं था। बनारस-लखनऊ घराना उत्तर प्रदेश में था और मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध ग्वालियर घराना था। दिल्ली से आगे-पीछे किराना घराना। लेकिन विलायत ख़ान की ज़िद और अपने पूर्वजों के संगीत से इतना प्रभावित था कि कहा कि वह अपने घर से अलग हो जाएगा। विलायत ख़ान ने कहा कि वह हमेशा गुस्से में रहता था। गुस्सा क्या है? एक निर्णय था। सरकार या सरकारी लॉलीपॉप के सामने झुकेंगे नहीं। और उनके जीवन में चार वक्फे आते हैं। जब उन्होंने अपनी इच्छा भी बताई। 1964 में वक्फ़ा एक हुआ था। लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे।
सेवादारों, विद्वानों और कलाकारों का सम्मान होता था। विलायत ख़ान को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। विलायत खान ने पहली बार कहा कि उन्हें ये सम्मान नहीं चाहिए था। क्यों आवश्यक नहीं है? क्योंकि पुरस्कार-सम्मान निर्धारकों को संगीत का कोई ज्ञान नहीं है। वक्फ़ा दो—1968। इंदिरा गांधी का शासन था। फिर सरकार ने ट्राई किया। इस बार भी विलायती खान का नाम सामने आया। पद्मश्री के लिए। पद्मश्री से एक पद। लेकिन ये ठहरे विलायत ख़ान।
Vilayat Khan :फेफड़ों में कैंसर था
इस बार भी नहीं किया। इस बार भी वही बहाना। उनके सितार-संगीत को कोई नहीं जानता। वक्फ़ा तीन, 2000 अटल बिहारी वाजपेयी नेतृत्व वाली सरकार। विलायत साहब बुढ़ापे में थे। फेफड़ों में कैंसर था। इस बार भारत सरकार ने विलायत ख़ान को पद्मविभूषण पुरस्कार दिया। भारत रत्न से ठीक नीचे और पहले दो पुरस्कारों से ऊपर। उसने सोचा कि इस बार विलायत ख़ान मानेंगे। लेकिन वही। विलायत ख़ान ठहरे हैं। उन्होंने कहा कि पुरस्कार अपने पास रखें। क्योंकि ये पुरस्कार मेरे शिष्यों, यानी शागिर्दों को मुझसे पहले दिए गए। सितार के लिए कोई पुरस्कार होता तो मुझे पहले मिलना चाहिए था।
Vilayat Khan :वक्फ़ा चार
वक्फ़ा चार – साल वही. 2000. कोशिश हुई कि गुस्साए हुनर विलायत ख़ान को कुछ तो सम्हाला जाए. संगीत नाटक अकादमी अवार्ड देने की कोशिश हुई. यहां क्या हुआ? वही. जो ख़ान साहब हमेशा करते आए थे. और साल 2004. फेफड़ों का कैंसर. और विलायत ख़ान के सितार के किस्से और वो राग, झाले, आलाप ही हमारे बीच रह गए. ये सुन लीजिए. राग केदार और राग बिलासखानी तोड़ी. हम क्या सुनाएंगे. सुना रहे विलायत ख़ान.
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Vilayat Khan :उस्ताद विलायत ख़ान ने पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण ठुकरा दिया