world cinema :फिल्म बनाते समय तिब्बत के लोग, जिसमें प्रवासी तिब्बती भी शामिल हैं, लेकिन तिब्बत के फिल्म निर्माताओं को राजनैतिक तथा सामाजिक कारणों से बहुत सावधान रहना पड़ता है। पेमा सिडेन और सोंथर गियाल चीन अधिकृत तिब्बत में रहकर फिल्में बना रहे हैं।
कई लोगों को आश्चर्य है कि तिब्बत, जो हमारा पड़ोसी देश है, भी सिनेमा बनाता है। यह सच है कि तिब्बत में फिल्में बनती हैं और तिब्बतियों को दूसरे देशों में रहते हुए भी फिल्में बनानी होती हैं। तिब्बती में भी फिल्में बनाई जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में ये फिल्में प्रदर्शित होती हैं। हां, इनका विषय आम फिल्मों से अलग है।
चीन ने तिब्बत को जबरदस्ती नियंत्रित करने के बाद तिब्बत के लोगों, खासकर बौद्धिक लोगों, को देश छोड़ना पड़ा। कुछ कलाकारों ने सिनेमा में रुचि दिखाई। तिब्बत से दूर रहते हुए भी तिब्बत पर फिल्म बनाने में सक्रिय रहे। ये लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। तिब्बत की राजनीतिक, भौगोलिक और संस्कृतिक चुनौतियों का सामना करते हुए फिल्म बना रहे हैं।
लेखक, संगीतज्ञ और पेंटर स्वयं काम नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें दूसरों पर निर्भर करना पड़ता है। Filmmaking प्रारंभ से ही दूसरों की जरूरत होती है। Filmmaking एक टीम का काम है। इसे बनाने में बहुत पैसा खर्च होता है, इसलिए फाइनेंसर, फोटोग्राफर, एडीटर, डिस्ट्रिब्यूटर आदि चाहिए। अर्थात् फिल्म को एक जटिल नेटवर्क चाहिए।
world cinema :फिल्मों पर सेंसरशिप
चीन में बनी फिल्मों पर सेंसरशिप की तलवार लटकती रहती है क्योंकि देश का प्रशासन फिल्मों पर बहुत कठोर है। चीनी प्रशासन के अधिक कठोर नियम स्वायत्त तिब्बत में बनने वाली फिल्मों पर लागू होते हैं क्योंकि तिब्बत एक संवेदनशील क्षेत्र है। उन्हें विशेष अनुमति चाहिए। तिब्बत के फिल्म निर्देशकों के सामने यह एक बहुत बड़ी चुनौती है।
फिल्म बनाते समय तिब्बत के लोग, जिसमें प्रवासी तिब्बती भी शामिल हैं, लेकिन तिब्बत के फिल्म निर्माताओं को राजनैतिक तथा सामाजिक कारणों से बहुत सावधान रहना पड़ता है। पेमा सिडेन और सोंथर गियाल चीन अधिकृत तिब्बत में रहकर फिल्में बना रहे हैं। सोन्थर गियाल दोनों फिल्म निर्देशक हैं और सिनेमाटोग्राफर भी हैं।
उन्होंने अपनी पहली फिल्म, द सन बीटेन पाथ, का लेखन और संपादन भी स्वयं किया है। तिब्बत के मिथक को नहीं दिखाते हुए, उनकी यह रोड मूवी कैमरे से बखूबी इस हिमालय क्षेत्र की सपाट, वनस्पतिहीन प्रकृति को पकड़ती है। फिल्म में एक युवा नीमा (येशे हार्दुक) बहुत परेशान है और पश्चाताप से छुटकारा पाने के लिए एक वृद्ध व्यक्ति (लो ची) से मिलती है। लेकिन वह वृद्ध से दोस्ती करने के लिए हाथ बढ़ा देता है।
तीन घंटे की फिल्म, द सन बीटेन पाथ, 2011 में कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में शामिल हुई और चार पुरस्कार जीती। यह फिल्म तिब्बत में रहने वाले निर्देशकों के दृष्टिकोण का एक शानदार उदाहरण है, जो वहाँ रहते हुए भी वहाँ के जीवन की कठिनाइयों को चित्रित करते हैं।
लेकिन इससे पहले 1957 और 1997 में एक ही नाम की दो फिल्में बन चुकी थीं। “सेवेन ईयर्स इन तिब्बत” इनका नाम है। 1957 में हैन्स निएटर ने इसे बनाया था। इस सवा घंटे की फिल्म में एक ऑस्ट्रियन पर्वातारोही हैनरिच हैरेर है, जिसका लक्ष्य हिमालय चढ़ना है, लेकिन वह युद्ध में गिरफ्तार हो जाता है। वह वहां से भागकर तिब्बत के चौथे दलाई लामा से दोस्ती करता है। दलाई लामा और हैनरिच हैरेर दोनों इस फिल्म में हैं।
1997 की सेवेन ईयर्स इन तिब्बत, जीन जेकब एनौड ने निर्देशित की है, और बेकी जॉनसन के साथ मिलकर हैनरिच हैरेर ने इसे लिखा है। इस फिल्म में प्रसिद्ध अभिनेता बैड पिट ने हैनरिच हैरेर की भूमिका निभाई है, जो तीन पुरस्कार जीत चुकी है। चीन तिब्बत को अपनी गर्भवती पत्नी को छोड़कर हथियाता है। यह जुनूनी पर्वत चढ़ने के लिए आया है, लेकिन तिब्बत की राजनीति में फंस जाता है। वह किसी तरह युद्ध बंदी हो जाता है और वहां से निकलता है।
इस फिल्म में पहली फिल्म से कई घटनाएं अलग हैं, शायद इसीलिए यह सवा दो घंटे लंबी है। यहां चीन का दमन दिखाया गया है।
world cinema :‘कुंदन’, सवा दो घंटे की फिल्म
1997 में तिब्बत में निर्देशित फिल्म “कुंदन” आई। यह सवा दो घंटे की फिल्म 14वें दलाई लामा के बचपन से युवावस्था तक के जीवन, चीन के दमन और तिब्बत की अन्य समस्याओं को दिखाती है, लेकिन इसे बनाने वाले पिछले दो “सेवेन ईयर्स इन तिब्बत” की तरह तिब्बत के लोग नहीं हैं। किंतु तिब्बत की फिल्मों का उल्लेख हर बार होगा।
जिस फिल्म निर्देशक ने 1900 के दशक में तिब्बत के सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया, उसके योगदान की चर्चा बिना तिब्बत के सिनेमा का इतिहास पूरा नहीं हो सकता। दुर्भाग्यवश, इस प्रसिद्ध निर्देशक का हाल में निधन हो गया है। 2011 की फिल्म “ओल्ड डॉग” में पेमा सिडेन (3 दिसंबर 1969–8 मई 2023) ने बहुत नाम कमाया। यह उनकी तीसरी फिल्म थी, इससे पहले उन्होंने तिब्बत पर आधारित फिल्में The Silent Holiday Stones और The Search बनाई थीं।
तिब्बत पर तिब्बती, गैर-तिब्बती और तिब्बती प्रवासी फिल्मों ने काम किया है। ऊपर विदेशी और तिब्बत में अभी भी रह रहे फिल्मकारों की चर्चा की गई है। तिब्बती मूल के लोगों ने कई फिल्में बनाई हैं। तिब्बत को लेकर उनका प्यार और कसक है। तेन्जिन सोनम भी एक फिल्म निर्देशक हैं। ‘व्हाइट क्रेन फिल्म्स’ उनकी साथी ऋतु सरीन ने बनाया था।
तेन्जिन सोनम ने कभी अकेले और कभी ऋतु सरीन के साथ मिलकर फिल्में बनाई हैं। भारत के धर्मशाला उनका घर है। तिब्बत में स्वतंत्रता भी एक थीम है।
दोनों ने बीस से अधिक डॉक्युमेंट्री और दो ड्रामा फिल्में मिलकर बनाई हैं। हर फिल्म में वे तिब्बत के मुद्दों को उठाते हैं, जो उनका विषय है। उनकी फिल्में देश-विदेश के फिल्म समारोहों में दिखाई जाती हैं और उन पर कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होते हैं। उनकी कुछ फिल्मों के नाम उनका मत बताते हैं।
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उनकी कई फिल्मों के नाम हैं, जैसे “द सन बिहाइंड द क्लाउड: तिब्बत’स स्ट्रगल फॉर फ्रीडम”, “द थ्रेड ऑफ कर्मा”, “ड्रीमिंग ल्हासा”, “द सीआईए इन तिब्बत”, “ए स्ट्रेन्जर इन माई नेटिव लैंड”, “तिब्बत”, “द ट्रायल ऑफ टे 1988 में उन्होंने “फिल्म्स ऑन हिस होलीनेस द दलाई लामा” नामक एक वीडियो फिल्म भी बनाई।
इस दशक में तिब्बत पर बनने वाली कई फिल्में हैं, जैसे “व्हील ऑफ टाइम” (2003), “मिलरेपा” (2006), “माउंटेन पेट्रोल” (2004), “पाथ्स ऑफ द सोल” (2015), “बिकमिंग हू आई वाज” (2017)। यह सिर्फ शुरुआत है, इसलिए तिब्बत के सिने-निर्देशकों से काफी उम्मीदें हैं।
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world cinema की आश्चर्यजनक दुनिया: तिब्बत का सिनेमा, आध्यात्मिकता की ओर