UP: भाजपा को उत्तर प्रदेश में संघ से दूरी बनाना भारी पड़ा। संघ और भाजपा की समन्वय समितियां या क्षति नियंत्रण बैठकें जिलों में नहीं हुईं। भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति बनाने तक में संघ से सलाह नहीं ली। लिहाजा, संघ ने भी अपने वैचारिक उद्देश्यों तक सीमित रखा।
भाजपा की लोकसभा चुनाव में लगभग आधी सीटों की हार के कई कारण हैं, लेकिन संघ से दूरी भी एक महत्वपूर्ण कारण है। भाजपा ने शायद पहली बार प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति बनाने तक में संघ से परामर्श नहीं लिया है। लिहाजा, संघ ने भी अपने वैचारिक उद्देश्यों तक सीमित रखा।
भाजपा की लोकसभा चुनाव में लगभग आधी सीटों की हार का एक महत्वपूर्ण कारण संघ से दूरी है। भाजपा ने पहली बार प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति तक में संघ से सलाह नहीं ली होगी। यही कारण है कि संघ भी अपने वैचारिक लक्ष्यों तक सीमित रहा।
जिलों में न तो संघ और भाजपा की समन्वय समितियां न ही छोटे-छोटे स्तर पर डैमेज कंट्रोल के लिए होने वाली संघ परिवार की बैठकें दिखीं। इस चुनाव में कम मतदान पर लोगों को घर से बाहर निकालने वाले समूह भी नहीं दिखे।
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्या हुआ जो संघ को चुनाव से बाहर कर दिया गया? कुछ संघ के वर्तमान, पूर्व और प्रचारकों ने बताया कि भाजपा के एकल निर्णय और संघ परिवार के संगठनों के साथ संवादहीनता इसकी मुख्य वजह थी।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कहना, “भाजपा अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है”, माना जाता है। उसने स्वयंसेवकों को भी निराश कर दिया कि उसे अब संघ का समर्थन नहीं चाहिए। संघ ने एक पूर्व वरिष्ठ पदाधिकारी को बताया कि वह अचानक तटस्थ नहीं था।
2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों से निराश भाजपा ने सियासी निर्णयों में संघ परिवार को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया, संघ से जुड़े सूत्रों ने बताया।
UP: संघ ने कई उम्मीदवारों से असहमति व्यक्त की
बताया जाता है कि संघ ने लगभग 25 सीटों (कौशांबी, सीतापुर, रायबरेली, कानपुर, बस्ती, अंबेडकरनगर, जौनपुर और प्रतापगढ़) के उम्मीदवारों से असहमति जताई थी। साथ ही, दूसरे दलों के लोगों को भाजपा में शामिल करने पर व्यापक विरोध हुआ।
प्राप्त सूचना के अनुसार, संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से कहा कि दूसरे दलों के अलोकप्रिय और दागी नेताओं को शामिल करना उचित नहीं है। इससे विवाद बढ़ता है। संगठन की साख पर भी प्रश्नचिन्ह है। उसकी सलाह, हालांकि, नहीं मानी गई। इसलिए संघ निराश हो गया।
भारतीय जनता पार्टी का चुनाव प्रबंधन पहले से ही कागजों पर था। संघ भी निराश हो गया क्योंकि ज्यादातर स्थानों पर भाजपा के वोटरों को बाहर निकालने वाले या उन्हें समझाने वाले नहीं मिले। नतीजतन, 2014, 2019, 2017 और 2022 का प्रबंधन अधिकांश मतदान केंद्रों पर नहीं दिखाई दिया।
UP: संघीय संवाद बैठक का लाभ नहीं मिला
संघ परिवार ने चुनाव के एक साल पहले ही अपने वैचारिक कार्यक्रम के तहत लोगों से बातचीत शुरू कर दी थी। घोषणा होने तक प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में एक लाख सभाएं हो चुकी थीं।
इसके तहत, संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं ने 10 से 20 परिवारों के साथ बैठकें करके मतदाताओं को मतदान करने के लिए जागरूक करने, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक मुद्दों पर किए गए कामों पर चर्चा की, लेकिन भाजपा यह कदम भी नहीं उठा पाई।
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UP: भाजपा को संघ से अलग होना भारी पड़ा..। आरएसएस इन उम्मीदवारों से असहमत था; BJP ने कोई सलाह नहीं ली
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