Supreme Court: बिना मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता वाले फिजियोथेरेपिस्ट और व्यावसायिक चिकित्सक ‘डॉ’ शीर्षक नहीं इस्तेमाल कर सकते
Supreme Court: भारत में फिजियोथेरेपिस्ट और अन्य व्यावसायिक स्वास्थ्यकर्मी बिना मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता के ‘डॉ’ शीर्षक का उपयोग नहीं कर सकते — कोर्ट एवं स्वास्थ्य नियामक-संस्थाओं ने निर्देश दिए हैं। जानिए पूरी खबर।
Supreme Court बिना मेडिकल डिग्री डॉक्टर नहीं
भारत में स्वास्थ्य-सेवा क्षेत्र में हाल-फिलहाल एक महत्वपूर्ण निर्णय सामने आया है जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि बिना मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता वाले फिजियोथेरेपिस्ट और अन्य व्यावसायिक चिकित्सक ‘डॉ’ शीर्षक का प्रयोग नहीं कर सकते। यह दिशा-निर्देश स्वास्थ्य विभाग एवं न्यायालयिक फैसलों के आधार पर जारी किया गया है।
सबसे पहले यह जानना महत्वपूर्ण है कि शीर्षक ‘डॉ’ पारंपरिक रूप से वे लोग उपयोग करते हैं जिनके पास चिकित्सकीय विज्ञान (एमबीबीएस, बीएएमएस, बीएचएमएस आदि) की मान्यता प्राप्त डिग्री हो और जो पंजीकृत चिकित्सक-प्रैक्टिशनर हों। भारत में इस मामले में कई न्यायालयों ने यह रुख अपनाया है कि फिजियोथेरेपिस्ट या occupational therapists इस प्रकार के शीर्षक का प्रयोग तब तक नहीं कर सकते जब तक वे राज्य-चिकित्सा पंजीकरण में दर्ज न हों।
उदाहरण के लिए, Indian Medical Association (आईएमए) ने स्पष्ट किया है कि फिजियोथेरेपिस्ट ‘डॉ’ नाम के उपयोग-प्रकरण में कानून 1916 की धारा 6 एवं 6A का उल्लंघन कर सकते हैं।

कोर्ट-निर्देशों का सार
Supreme Court राज्य-उच्च न्यायालयों में निम्नलिखित तरह के निर्णय सामने आए हैं:
- Madras High Court ने कहा कि फिजियोथेरेपिस्ट ‘डॉ’ शीर्षक का प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में चिकित्सक-सॅमान माना नहीं गया है।
- Bengaluru City Court ने जून 2020 में यह कहा कि occupational therapists एवं physiotherapists ‘डॉ’ शीर्षक नहीं मिला सकते और उन्हें चिकित्सक की देख-रेख में काम करना चाहिए।
- केंद्रीय स्तर पर Directorate General of Health Services (डीजीएचएस) ने एक पत्र जारी कर कहा कि फिजियोथेरेपिस्ट ‘डॉ’ शीर्षक के प्रयोग से रोगियों को भ्रमित कर सकते हैं और यह चिकित्सा-योग्यता अधिनियम 1916 का उल्लंघन हो सकता है।
क्या आदेश जारी हुआ है?
साल 2025 में डीजीएचएस ने 9 सितंबर के पत्र में फिजियोथेरेपिस्टों को ‘डॉ’ शीर्षक प्रयोग न करने का निर्देश दिया था। हालांकि अगले दिन ही (10 सितंबर) इसे वापस लिया गया। यह दिखाता है कि विषय अभी भी समीक्षा-अवस्था में है और अंतिम नियम अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है।
Supreme Court क्यों यह कदम उठाया गया?
इस निर्णय के पीछे प्रमुख कारण यह हैं:
- फिजियोथेरेपिस्ट और अन्य पैरामेडिकल पेशेवर चिकित्सा निदान करने या दवाएँ लिखने का अधिकार नहीं रखते। यदि ‘डॉ’ शीर्षक लगा लें, तो आम जनता उन्हें चिकित्सक समझ सकती है, जिससे स्वास्थ्य-जोखिम बढ़ सकता है।
- शीर्षक-दुरुपयोग से quackery (अनुचित चिकित्सकीय दावा) का मार्ग खुल सकता है।
- शीर्षक-स्पष्टता का अभाव रोगी-विश्वास और स्वास्थ्य-प्रमाण-विश्वास को प्रभावित कर सकता है।
Supreme Court इसके प्रभाव और चुनौतियाँ
यह नियम लागू होने पर फिजियोथेरेपिस्टों को अपनी पेशेवर पहचान-प्रचार बदलना पड़ सकता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यदि फिजियोथेरेपिस्ट बीपीटी/एमपीटी या अन्य डॉक्टरेट (PhD) धारक हों, तब भी ‘डॉ’ शीर्षक तभी प्रयोग करना चाहिये जब स्पष्ट बताया गया हो कि वह ‘फिजियोथेरेपिस्ट’ के रूप में है न कि चिकित्सक के रूप में।
इसके बावजूद पेशेवर संघों ने इसे चुनौतीपूर्ण माना है क्योंकि वे महसूस करते हैं कि उनकी शिक्षा-प्रशिक्षण भी पर्याप्त-है और शीर्षक-इस्तेमाल-रोक से उनकी गरिमा प्रभावित हो सकती है।
स्वास्थ्य-सेवा में भरोसा और पारदर्शिता बेहद महत्वपूर्ण हैं। यदि कोई पेशेवर ‘डॉ’ शीर्षक लगाकर मरीजों को डॉक्टर के रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि उसके पास चिकित्सकीय पंजीकरण नहीं है, तो यह न केवल कानूनी रूप से गलत है बल्कि रोगी के स्वास्थ्य-हित के लिए भी जोखिम-भरा हो सकता है। इस लिहाज से न्यायालय एवं स्वास्थ्य-नियंत्रक-संस्थाओं द्वारा यह निर्देश देना समय-सापेक्ष दिखता है कि पेशेवर शीर्षकों, योग्यता-प्रमाणों एवं चिकित्सा-सेवा-क्रियाओं में स्पष्टता हो।
अगर आप चाहें, तो मैं इस संबंध में विभिन्न राज्य-उच्च न्यायालयों के आदेशों का संकलन और अभ्यास में चल रही चुनौतियों की जानकारी भी दे सकता हूँ।
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