Mohan Bhagwat ‘हिंदू नहीं, तो दुनिया नहीं’: हिंदुत्व पर मोहन भागवत का बड़ा बयान
Mohan Bhagwat ‘हिंदू नहीं, तो दुनिया नहीं’—RSS प्रमुख का बयान चर्चा में
‘हिंदू नहीं, तो दुनिया नहीं’: हिंदुत्व पर मोहन भागवत का बड़ा बयान — जानिए क्या कहा RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व पर बड़ा बयान देते हुए कहा, “हिंदू नहीं, तो दुनिया नहीं।” उनके इस वक्तव्य ने सामाजिक और राजनीतिक हलकों में नई चर्चा छेड़ दी है। जानिए क्या कहा और क्यों ये बयान सुर्खियों में है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदुत्व और भारतीय सभ्यता पर एक बड़ा बयान दिया है, जिसने सामाजिक और राजनीतिक हलकों में नई चर्चा छेड़ दी है। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हिंदू नहीं, तो दुनिया नहीं।” उनके इस वक्तव्य को कई लोग सांस्कृतिक गौरव का संदेश मान रहे हैं, जबकि राजनीतिक विपक्ष इसे वैचारिक बहस का मुद्दा बता रहा है।
Mohan Bhagwat भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदू शब्द किसी धर्म, जाति या पंथ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवन-पद्धति है जो दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की पहचान, संस्कृति और अस्तित्व हिंदू दर्शन से गहराई से जुड़ा है। “हिंदू केवल पूजा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है—जिसमें समरसता, मानवता, सद्भाव और सबके कल्याण की भावना शामिल है,” उन्होंने कहा।

भागवत के अनुसार, आज दुनिया कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है—जलवायु परिवर्तन, हिंसा, असमानता, आध्यात्मिक संकट और सामाजिक विभाजन। ऐसे समय में हिंदू दर्शन दुनिया को शांति, संतुलन और सह-अस्तित्व का रास्ता दिखा सकता है। उन्होंने कहा कि “वसुधैव कुटुंबकम” केवल नारा नहीं, बल्कि वह मूल विचार है जिसे दुनिया अपनाए तो अनेक वैश्विक संकटों का समाधान मिल सकता है।
Mohan Bhagwat राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों को लेकर नई बहस शुरू
भागवत के इस बयान का राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर व्यापक असर देखा जा रहा है। समर्थकों का कहना है कि यह बयान भारत की सांस्कृतिक विरासत और वैश्विक योगदान को रेखांकित करता है, जबकि आलोचक इसे धार्मिक भावनाओं को लेकर बहस छेड़ने वाला कदम बता रहे हैं।
विशेषज्ञों का विश्लेषण है कि RSS प्रमुख का यह वक्तव्य ऐसे समय आया है जब देश में सांस्कृतिक पहचान, राष्ट्रीयता और परंपरा को लेकर बहस तेज है। भागवत ने अपने भाषण में यह भी स्पष्ट किया कि हिंदुत्व किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि “सबको जोड़ने वाली शक्ति” है।
कुल मिलाकर, मोहन भागवत का यह वक्तव्य फिर से हिंदुत्व की परिभाषा, उसकी सीमा और उसके वैश्विक महत्व को लेकर संवाद को नया आयाम देता है।
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