Narendra Modi: संसद में शोर नहीं, काम की ज़रुरत है — पीएम मोदी का विपक्ष को मशवरा
Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष को साफ संदेश दिया कि संसद ड्रामा का मंच नहीं है — “डिलिवरी होनी चाहिए”। उन्होंने हाल की Bihar Assembly election 2025 के नतीजों का जिक्र करते हुए कहा कि असफलता को संसद का हवाला नहीं बनाना चाहिए। पूरा बयान, सत्र की तैयारी और आगे की उम्मीदों पर रिपोर्ट पढ़ें।
संसद का 2025 का शीतकालीन सत्र आज (1 दिसंबर) से शुरू हो गया है। इस अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से संवाद करते हुए विपक्ष पर सीधा तंज कसते हुए कहा है कि संसद “ड्रामा” करने का स्थान नहीं है — बल्कि यहाँ “डिलिवरी” होनी चाहिए।
ड्रामा नहीं, डिलीवरी चाहिए: शीतकालीन सत्र से पहले मोदी का सीधा संदेश
Narendra Modi मोदी ने कहा कि संसद का उद्देश्य देश के विकास, नीतियों और जनहित के प्रस्तावों पर काम करना है, न कि राजनीतिक तमाशा। उन्होंने स्पष्ट किया कि नारे नहीं, नीति — और ड्रामा नहीं, डिलिवरी — इस सत्र का मूल मंत्र होना चाहिए। विशेष रूप से, उन्होंने हाल में हुए बिहार चुनावों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कुछ दल अब तक अपनी पराजय को पचा नहीं पाए हैं और यही असंतोष, जो सार्वजनिक और वैधानिक बहस का बहाना बनता है, संसद कार्यवाही को बाधित कर सकता है।

मोदी ने विपक्ष से आग्रह किया कि वे चुनावी परिणामों की मायूसी को पीछे छोड़ दें, और लोकहित, विकास, जनकल्याण जैसे बड़े मुद्दों को प्राथमिकता दें। यदि विपक्ष के पास मजबूत, सार्थक मुद्दे हैं — उन्हें संसद में उठाया जाए। लेकिन, “परेशानी की बातों को राजनीति का हथियार न बनाएं” उनका कहना था। इस शीतकालीन सत्र में लगभग 13 महत्वपूर्ण विधेयक (बिल) प्रस्तुत होने की संभावना है, जिसकी वजह से मोदी ने संसदीय सहयोग, जवाबदेही और सकारात्मक भागीदारी की अपेक्षा जताई है।
मोदी ने यह भी कहा कि लोकतंत्र सिर्फ वोट देने का नाम नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं और उम्मीदों का सम्मान करने का तरीका है। उन्होंने बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग, ख़ासकर महिलाओं की भागीदारी को भारतीय लोकतंत्र की मजबूती बताया।
Narendra Modi वोट की पराजय से नहीं, देश की प्रगति से हो बातचीत — संसद में काम की अपील
उनका यह बयान कई मायनों में एक चेतावनी जैसा भी है — कि संसद को मंच बनाने के बजाय, इसे विचार-विमर्श और नीतिगत निर्माण का केंद्र बनाया जाए। उन्होंने कहा कि यदि विपक्ष सकारात्मक हो — तो सरकार भी सहयोग देने को तत्पर है, मगर “हंगामा नहीं, काम चाहिए”। बहरहाल, विपक्ष की राय इस पर अलग है। कुछ नेताओं ने कहा है कि मोदी का यह रुख “द्रमाबाज़ी से बचने” की अपील है, लेकिन उन्हें डर है कि असली जनता के मुद्दों को दबाया जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार की जल्दबाजी में लाए जाने वाले विधेयकों पर खुली, निष्पक्ष चर्चा होनी चाहिए — न कि केवल पारित कराने की।
शीतकालीन सत्र (1–19 दिसंबर 2025) का यह प्रारंभ इस बार देश की राजनीति और कानून निर्माण दोनों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस दौरान यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या संसदीय कार्यवाही “डिलिवरी” पर केंद्रित रहेगी — या फिर पुराने विवाद, चुनाव के बाद की नाराजगी फिर से रंग दिखाएगी।
समये की मांग है कि राजनीति में नाटक से ज़्यादा — नीति, योजना, और जनहित पर काम हो।
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