Who Is Tarique Rahman: कौन हैं तारिक रहमान? लंदन में 15 साल के ‘वनवास’ के बाद क्यों मची है उनकी वापसी पर खलबली?
Who Is Tarique Rahman: जानें कौन हैं तारिक रहमान, वे अब तक लंदन में क्यों थे और उनकी बांग्लादेश वापसी पर इतना बवाल क्यों है? बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के इस नेता का पूरा इतिहास और चुनावी समीकरण यहाँ पढ़ें। 5 साल का लंबा इंतजार खत्म! 🇧🇩 तारिक रहमान की वतन वापसी ने बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। आखिर कौन हैं ये नेता जिनके पीछे करोड़ों समर्थक दीवाने हैं? जानिए पूरी कहानी।
तारिक रहमान: निर्वासन, विवाद और सत्ता की दहलीज पर वापसी की पूरी दास्तां
भूमिका बांग्लादेश की राजनीति आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां इतिहास खुद को दोहरा रहा है। शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद, जिस एक नाम की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह है तारिक रहमान। 15 साल से अधिक समय तक लंदन में रहने के बाद, उनका स्वदेश लौटना केवल एक नेता की वापसी नहीं, बल्कि एक सत्ता के परिवर्तन का सबसे बड़ा संकेत है।


कौन हैं तारिक रहमान?
तारिक रहमान बांग्लादेश के सबसे रसूखदार राजनीतिक परिवार के वारिस हैं। वे बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति और जियाउर रहमान और तीन बार प्रधानमंत्री रहीं बेगम खालिदा जिया के बड़े बेटे हैं। उन्हें प्यार से ‘पिंटू’ भी कहा जाता है। वे वर्तमान में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। 1990 के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और बहुत कम समय में पार्टी के भीतर एक ताकतवर ध्रुव बनकर उभरे।

वे अब तक कहां और क्यों थे?
तारिक रहमान साल 2008 से लंदन में रह रहे थे। 2007 में बांग्लादेश में सेना समर्थित कार्यवाहक सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें गिरफ्तार किया था। जेल में रहने के दौरान उनकी सेहत खराब हो गई, जिसके बाद वे अदालत से इलाज के लिए विदेश जाने की अनुमति लेकर लंदन चले गए।
तब से वे कभी वापस नहीं लौटे। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी शेख हसीना की सरकार। हसीना सरकार के दौरान तारिक पर सैकड़ों मुकदमे दर्ज किए गए। कानून की नजर में वे एक ‘भगोड़े’ (Absconder) थे। उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और हत्या के प्रयास जैसे गंभीर आरोप थे, जिसके कारण वे स्वदेश आने से बचते रहे।
Who Is Tarique Rahman इतना बवाल क्यों है?

तारिक रहमान की वापसी पर बवाल होने की तीन मुख्य वजहें हैं:
- 21 अगस्त का ग्रेनेड हमला: 2004 में ढाका में एक रैली के दौरान शेख हसीना पर ग्रेनेड से हमला हुआ था। हसीना तो बच गईं, लेकिन 24 लोगों की मौत हो गई। बांग्लादेश की एक अदालत ने तारिक रहमान को इस साजिश का मुख्य सूत्रधार मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। विरोधियों के लिए वे एक ‘अपराधी’ हैं, जबकि समर्थकों के लिए वे ‘राजनीतिक साजिश’ के शिकार हैं।
- रिमोट कंट्रोल राजनीति: पिछले 15 सालों से तारिक ने लंदन में बैठकर ‘स्काइप’ और ‘जूम’ के जरिए अपनी पार्टी को चलाया। उन्हें ‘रिमोट कंट्रोल नेता’ कहा जाने लगा। अब जब वे खुद जमीन पर होंगे, तो उनके समर्थकों का जोश सातवें आसमान पर है, जिससे कानून-व्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता को लेकर बहस छिड़ गई है।
- सत्ता की दावेदारी: तारिक की वापसी का सीधा मतलब है कि वे आगामी चुनावों में प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत उम्मीदवार होंगे। उनके आने से अवामी लीग के बचे-कुचे खेमे में डर है और आम जनता के बीच उम्मीद और आशंका दोनों का माहौल है।
तारिक रहमान का सफर लंदन के निर्वासन से शुरू होकर अब ढाका के नामांकन पत्रों तक पहुँच गया है। उनके आने से बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा शून्य भर गया है, लेकिन उनके साथ जुड़े पुराने विवाद और अदालती मामले अभी भी उनके रास्ते का कांटा बन सकते हैं। क्या वे एक नई छवि के साथ देश को संभाल पाएंगे? यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
वापसी क्यों नहीं की? (शेख हसीना का डर)
जब तक उनका इलाज चल रहा था, तब तक बांग्लादेश में शेख हसीना (अवामी लीग) की सरकार (2009) आ गई।
- हसीना सरकार ने तारिक रहमान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन माना। उन पर पुराने केसों के अलावा कई नए और गंभीर केस (जैसे 21 अगस्त ग्रेनेड हमला, मनी लॉन्ड्रिंग) थोप दिए गए। अगर वे वापस आते, तो उन्हें सीधे जेल में डाल दिया जाता और शायद फांसी या उम्रकैद की सजा हो जाती। इसलिए, उन्होंने लंदन में ही ‘राजनीतिक शरण’ (Political Asylum) ले ली और वहीं से पार्टी चलाने लगे।
तारिक रहमान बांग्लादेश छोड़ लंदन चले गए थे इसके मुख्य कारण ये है:
1. सेना समर्थित सरकार और गिरफ्तारी (2007) 2007 में बांग्लादेश में सेना के समर्थन वाली एक ‘कार्यवाहक सरकार’ (Caretaker Govt) आई थी। उनका मकसद राजनीति से भ्रष्टाचार हटाना था।
- गिरफ्तारी: मार्च 2007 में तारिक रहमान को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया।
- टॉर्चर: जेल में रहने के दौरान कथित तौर पर उन्हें बहुत प्रताड़ित (Torture) किया गया, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई और वे ठीक से चल-फिर भी नहीं पा रहे थे।
2. इलाज के लिए जमानत (2008)
- उनकी खराब हालत को देखते हुए, 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मेडिकल पैरोल (जमानत) दी।
- उन्हें इलाज के लिए विदेश (लंदन) जाने की अनुमति मिली। कहा जाता है कि उस वक्त उन्होंने एक बॉन्ड (शपथ पत्र) भी भरा था कि वे ठीक होकर वापस आएंगे और राजनीति से दूर रहेंगे।
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