One God: धर्म के नाम पर नफरत क्यों? जानें क्या है धर्म का असली मतलब और किसने बनाई जात-पात की दीवारें
इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं। जानिए आखिर क्यों धर्म और जाति के नाम पर होती है लड़ाई, और क्या है महान संतों और ग्रंथों का असली संदेश। “मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च… रास्ते अलग हो सकते हैं, लेकिन मंजिल सबकी एक ही है— इंसानियत। धर्म जोड़ने के लिए बना था, तोड़ने के लिए नहीं। आइए नफरत छोड़ें, प्यार बांटें।
धर्म का असली चेहरा और नफरत की सियासत

आज की दुनिया में जब हम समाचार खोलते हैं, तो अक्सर धर्म और जाति के नाम पर हिंसा की खबरें मिलती हैं। ‘धर्म’ (Religion) शब्द का मूल अर्थ संस्कृत के ‘धृ’ धातु से आया है, जिसका अर्थ है ‘धारण करना’। यानी वे गुण जो जीवन को सही दिशा में धारण करें— जैसे सत्य, अहिंसा, दया और प्रेम। फिर सवाल उठता है कि जिस धर्म की बुनियाद ही प्रेम है, उसके नाम पर इतनी नफरत क्यों?

1. धर्म क्या है और किसने बनाया?
दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों— हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई— का मूल सार एक ही है। कोई इसे ‘ईश्वर’ कहता है, कोई ‘अल्लाह’, कोई ‘वाहेगुरु’ तो कोई ‘जीसस’। महापुरुषों ने धर्म की स्थापना समाज को अनुशासन और नैतिकता सिखाने के लिए की थी।
जात-पात और भेदभाव का निर्माण किसी भगवान ने नहीं, बल्कि स्वार्थी इंसानी व्यवस्थाओं ने किया। समय के साथ, समाज को वर्गों में बांट दिया गया ताकि कुछ लोग सत्ता और संसाधनों पर अपना नियंत्रण रख सकें। जन्म के आधार पर ऊंच-नीच की भावना एक सामाजिक बुराई है, जिसका ईश्वरीय सत्ता से कोई लेना-देना नहीं है।

2. धर्म के नाम पर लड़ाई क्यों होती है?
धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाइयों के पीछे अक्सर धार्मिक कारण कम और राजनीतिक व व्यक्तिगत स्वार्थ ज्यादा होते हैं:
- अज्ञानता (Lack of Knowledge): ज्यादातर लोग अपने ही धर्म के ग्रंथों को सही से नहीं समझते। वे केवल वही मानते हैं जो उन्हें ‘कट्टरपंथी’ लोग सिखाते हैं।
- पहचान का संकट (Identity Crisis): लोग धर्म को एक ‘टीम’ की तरह देखने लगते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरे धर्म को नीचा दिखाकर ही वे अपने धर्म को महान साबित कर सकते हैं।
- राजनीति: इतिहास गवाह है कि सत्ता पाने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति हमेशा से काम करती आई है। लोगों को धर्म के नाम पर डराकर उनका वोट पाना आसान होता है।

“जात-पात और मजहब की दीवारें इंसानों ने बनाई हैं, कुदरत ने नहीं।
One God: क्या हम कभी उस धर्म को समझ पाएंगे जो सिर्फ मोहब्बत सिखाता है? धर्म के नाम पर लड़ने वालों के लिए एक आईना।
3. क्या सभी धर्म एक हैं?
हाँ, आध्यात्मिक स्तर पर सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है— मनुष्य को एक बेहतर इंसान बनाना।
- हिंदू धर्म कहता है: ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (पूरी पृथ्वी एक परिवार है)।
- इस्लाम सिखाता है: ‘पड़ोसी का हक’ और अमन।
- सिख धर्म कहता है: ‘मानस की जात सबै एकै पहचानबो’ (पूरी मानवता को एक ही मानो)।
- ईसाई धर्म का संदेश है: ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो’।
4. समाधान क्या है?
हमें यह समझने की जरूरत है कि इंसानियत (Humanity) ही सबसे बड़ा धर्म है। अगर हम प्यासे को पानी पिलाते समय या किसी दुर्घटना में घायल की मदद करते समय उसका धर्म नहीं पूछते, तो बाकी जीवन में क्यों?
लड़ाई धर्म के बीच नहीं, बल्कि मानवता और कट्टरता के बीच है। जिस दिन हम यह समझ लेंगे कि ऊपर वाले ने हमें ‘इंसान’ बनाकर भेजा था और हमने खुद को ‘लेबल्स’ में बांट लिया, उसी दिन सारी लड़ाइयां खत्म हो जाएंगी।
One God: दुनिया में कितने धर्म हैं?
दुनिया में धर्मों की कुल संख्या को लेकर विशेषज्ञों के अलग-अलग मत हैं, लेकिन एक व्यापक अनुमान के अनुसार विश्व भर में 4,200 से अधिक धर्म, संप्रदाय और आध्यात्मिक समूह मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश बहुत छोटे या क्षेत्रीय स्तर तक सीमित हैं। वैश्विक स्तर पर मुख्य रूप से 5 बड़े धर्म सबसे अधिक प्रभावशाली हैं: ईसाई (Christianity), इस्लाम (Islam), हिंदू (Hinduism), बौद्ध (Buddhism) और सिख (Sikhism)।

आंकड़ों के अनुसार, दुनिया की लगभग 75% से अधिक आबादी इन्हीं प्रमुख धर्मों का पालन करती है। इसके अलावा, एक बहुत बड़ी आबादी (लगभग 1.2 बिलियन लोग) ऐसी भी है जो किसी भी धर्म से नहीं जुड़ी है, जिन्हें ‘अधार्मिक’ या ‘नास्तिक’ (Atheist/Agnostic) कहा जाता है। इसके अलावा जैन धर्म, बहाई, शिंतो और पारसी जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण धर्म भी दुनिया की सांस्कृतिक विविधता में बड़ा योगदान देते हैं।
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