Bandhu Singh: कभी अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली माँ तरकुलहा के अनन्य भक्त अंग्रेजी सरकार उन्हें फांसी देना चाहती थी, लेकिन हर बार देवी मां उन्हें बचाती थीं। उन्हें सात बार फांसी पर लटकाने की कोशिश की गई, और बार-बार फंदा टूट गया।
1857 की पहली क्रांति में देश के बहुत से युवा मर गए। हर जगह अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह की आवाज उठी। यह विद्रोह मंगल पांडेय से शुरू हुआ और गोरक्ष नगरी तक फैल गया। यहीं अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध का आयोजन किया गया था, जो आजादी के पक्षधर और देवी मां के अनन्य भक्त बंधु सिंह ने शुरू किया था। अंत में अंग्रेज उनसे इतना परेशान हो गए कि उन्हे धोखे से गिरफ्तार कर फांसी के फंदे पर लटकाना चाहा, लेकिन उनकी मां हर बार मौत की राह में रोड़ा बनकर खड़ी हो जातीं।
गोरखपुर से २५ किलोमीटर दूर, देवीपुर एक रियासत थी। जहां 1 मई 1833 को अमर शहीद बंधू सिंह जैसे क्रांतिकारी युवा ने जन्म लिया Bhangu Singh जमींदार परिवार से थे। देवीपुर उनकी रियासत थी। घर में पांच भाई थे। व्यापार के लिए अंग्रेज इस क्षेत्र में आते थे। बंधु सिंह ने अपने माता-पिता से अंग्रेजों की गुलामी और अत्याचार की बातें सुनते हुए अंग्रेजों के खिलाफ नफरत विकसित की। टप्पू सिंह, बंधू सिंह के वंशज, कहते हैं कि जब 1857 की क्रांति की आहट हुई तो बंधू सिंह ने भी मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने देवी मां की अनन्य श्रद्धा की।
Bandhu Singh: देवी को खून चढ़ाते थे
गांव से बाहर एक तालाब के किनारे एक तरकुल का पेड़ था, जहां वह हर दिन देवी मां की पूजा करते थे। इस दौरान वह अपना रक्त भी चढ़ाते रहे। उस स्थान पर आज भी पिंडियां हैं। भव्य मंदिर भी बना है। इस स्थान का नाम भी तरकुलहा देवी पड़ गया क्योंकि इस स्थान पर तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडी का वास और पूजा जाता था। जहां दूर-दूर से हजारों लोग दर्शन करने आते हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस स्थान को भी सुंदरीकरण करने के लिए बजट दिया है।
Bandhu Singh: कई अंग्रेजों को मार डाला गया
माना जाता है कि जब 1857 की क्रांति शुरू हुई, बंधु सिंह भी अंग्रेजों के शोषण से भारत मां को बचाने के लिए सड़क पर उतरे। इस दौरान उन्होंने अपने कौशल और गोरिल्ला युद्ध में अनुभव के कारण बहुत से अंग्रेज सैनिकों को मार डाला, जिससे अंग्रेज घबरा गए। अंग्रेज अफसरों ने यह बात धीरे-धीरे सुनी। अंग्रेज सैनिकों ने मुखबिरों की सूचना पर बंधू सिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया। उन्हें फांसी की सजा देने का ऐलान करने से अंग्रेज चिढ़े हुए थे। 12 अगस्त 1858 को अलीनगर चौराहे के पास एक बरगद के पेड़ पर फांसी देने का फैसला किया गया था।
Bandhu Singh: फांसी का फंदा बार-बार टूट जाता था
प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय इतिहासकारों ने बताया कि उस दौरान फांसी का फंदा टूट जाता था। यह सात बार हुआ था। यह देखकर वहां उपस्थित अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों को भी आश्चर्य हुआ। उन्हें आखिर क्या हो रहा था पता नहीं था। अंत में लगातार प्रताड़ना से परेशान बंधू सिंह ने खुद मां तरकुलहा को याद किया और कहा, “हे मां अब मुझे मुक्ति दें।”उन्हें आठवीं बार फांसी दी गई और वे शहीद हो गए। यहां हर वर्ष 12 अगस्त को आयोजन होता है, जिसे लोग बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं। अब भीउनका 166 वां बलिदानी दिवस मनाया गया।
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Bandhu Singh: तरकुलहा देवी ने मौत को रोका, सात बार फांसी का फंदा टूटा..। गोरखपुर की क्रांतिकारी कहानी सुनाई देगी
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