Madhya Pradesh ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: जहाँ स्वयं ‘ॐ’ के आकार में बहती हैं माँ नर्मदा; जानिए इस पावन धाम का रहस्य
क्या आप जानते हैं कि ओंकारेश्वर ही वह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहाँ भगवान शिव प्रतिदिन शयन करने आते हैं? नर्मदा की गोद में बसे इस अलौकिक धाम के दर्शन। मध्य प्रदेश के खंडवा में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास, महत्व और धार्मिक कथाएँ। जानिए क्यों इस मंदिर को शिव के शयन का स्थान माना जाता है और ‘ॐ’ आकृति का क्या रहस्य है।
Madhya Pradesh ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: नर्मदा तट पर ‘ॐ’ की गूँज और महादेव का विश्राम स्थल
भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में चतुर्थ स्थान पर विराजमान ‘ओंकारेश्वर’ का विशेष महत्व है। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच स्थित ‘मान्धाता’ या ‘शिवपुरी’ नामक द्वीप पर यह मंदिर स्थित है। इस द्वीप का आकार प्राकृतिक रूप से पवित्र शब्द ‘ॐ’ जैसा है, जिसके कारण इसे ओंकारेश्वर कहा जाता है।



ऐतिहासिक और पौराणिक कथा (History)
ओंकारेश्वर के पीछे कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से तीन प्रमुख हैं:
- राजा मांधाता की तपस्या: पौराणिक कथाओं के अनुसार, इक्ष्वाकु वंश के राजा मांधाता ने यहाँ नर्मदा किनारे एक पर्वत पर घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और राजा के निवेदन पर यहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इसीलिए इस पर्वत को ‘मांधाता पर्वत’ भी कहा जाता है।
- विंध्याचल पर्वत का अभिमान: एक अन्य कथा के अनुसार, जब विंध्याचल पर्वत ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए भगवान शिव की पूजा की, तो शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। भक्तों के कल्याण के लिए शिव जी दो रूपों में विभाजित हो गए—एक ओंकारेश्वर (जो द्वीप पर हैं) और दूसरे अमलेश्वर या ममलेश्वर (जो नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित हैं)। हालांकि ये दो अलग मंदिर हैं, लेकिन इनकी गणना एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है।
- देव-असुर संग्राम: कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के युद्ध में देवता हार गए, तब उन्होंने इसी स्थान पर शिव की आराधना की थी, जिसके बाद महादेव ने असुरों का वध किया।



ओंकारेश्वर का अद्वितीय महत्व (Significance)
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे भगवान शिव का शयन स्थान माना जाता है। मान्यता है कि तीनों लोकों का भ्रमण करने के बाद महादेव रात्रि विश्राम के लिए प्रतिदिन ओंकारेश्वर आते हैं।
- शयन आरती: यहाँ रोज रात को शयन आरती होती है, जिसमें भगवान के लिए चौपड़ (एक प्रकार का खेल) सजाया जाता है। आश्चर्यजनक रूप से, सुबह जब कपाट खुलते हैं, तो पासे बिखरे हुए मिलते हैं, जैसे किसी ने रात में वहां खेल खेला हो।
- नर्मदा स्नान का पुण्य: ओंकारेश्वर के दर्शन तब तक अधूरे माने जाते हैं जब तक भक्त नर्मदा में स्नान नहीं कर लेता। कहा जाता है कि जो पुण्य काशी में विश्वनाथ के दर्शन से मिलता है, वही पुण्य यहाँ नर्मदा स्नान और शिव पूजन से प्राप्त होता है।



स्थापत्य कला
ओंकारेश्वर मंदिर नागर शैली में बना एक भव्य पाँच मंजिला ढांचा है। मंदिर के खंभों पर जटिल नक्काशी और मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। यहाँ की शांति और नर्मदा की कल-कल बहती धारा श्रद्धालुओं को एक अलग ही आध्यात्मिक दुनिया में ले जाती है।
कैसे पहुँचें?
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा इंदौर (Indore) है, जो यहाँ से लगभग 77 किमी दूर है।
- रेल मार्ग: खंडवा और इंदौर प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।
- सड़क मार्ग: मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से ओंकारेश्वर के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं।
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