PM Modi Udupi visit: क्यों खास है उडुपी का 800 साल पुराना श्री कृष्ण मठ? पीएम मोदी की यात्रा ने बढ़ाई चर्चा, जानें अनोखी परंपराएं
PM Modi Udupi visit: कर्नाटक के उडुपी स्थित 13वीं शताब्दी के प्राचीन श्री कृष्ण मठ को 800 वर्ष से ज्यादा की विरासत है। 28 नवंबर 2025 को नरेन्द्र मोदी की यात्रा के साथ फिर सुर्खियों में आया यह मठ — जानिए इसका इतिहास, अद्वितीय दर्शन पद्धति, पर्चर्य प्रथा और सामाजिक–आध्यात्मिक महत्व।
मठ का ऐतिहासिक और दार्शनिक महत्व
- श्री कृष्ण मठ की स्थापना 13वीं शताब्दी में श्री माधवाचार्य — द्वैत वेदांत दर्शन के प्रवर्तक — ने की थी।
- यह मठ सिर्फ मंदिर नहीं बल्कि एक जीवंत आश्रम-संस्थान है, जहाँ आज भी वेदांत, भक्ति, दास साहित्य और वैष्णव परंपरा जीवित है।
- मठ की दीवारों, मंदिर परिसर, आस-पास के मठें (आष्ट मठ) — सब मिलकर इसे दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण वैष्णव केंद्रों में से एक बनाते हैं।


PM Modi Udupi visit अनोखी दर्शन पद्धति और परंपराएँ
- यहाँ भगवान कृष्ण की मूर्ति सीधे देखने की आम प्रथा नहीं है। भक्तों को दर्शन के लिए एक चांदी की झरोखा-खिड़की होती है, जिसमें नौ छोटे छेद होते हैं — यह झरोखा “नवग्रह किंडी” कहलाता है।
- दूसरी विशेषता — मूर्ति पूर्व की बजाय पश्चिम दिशा की ओर मुख करती है, जो दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों की सामान्य दिशा-प्रथा से अलग है।
- इसके अलावा, एक प्रसिद्ध कथा है संत कनकदास से जुड़ी — कहा जाता है कि जातिगत भेदभाव के कारण उन्हें मठ में प्रवेश नहीं मिला था, लेकिन उनकी भक्ति से भगवान कृष्ण ने अपने मूर्ति का मुख घूमाकर पश्चिम की ओर कर लिया और दीवार में दरार बन गई; उस दरार को स्थायी रूप देकर “कनकना किंडी” नाम दिया गया — जहाँ से भक्तों को दर्शन मिलता है।
इस अनोखी पद्धति ने यह संदेश दिया कि भक्ति और श्रद्धा में सामाजिक बंधन, भेद-भाव नहीं आते — मठ ने एक सार्वभौमिक भक्ति-भूमि का रूप लिया।

प्रशासन और दैनंदिन परंपराएं — आष्ट मठ और पर्याय प्रथा
- श्री कृष्ण मठ का प्रबंधन और पूजा-रस्में 8 मठों (आष्ट मठ) द्वारा होती हैं, जिन्हें अक्सर “Ashta Mathas” कहते हैं। इन मठों में प्रबंधन और पूजा-कार्य हर 2 वर्ष में बदले जाते हैं — इस रोटेशन सिस्टम (पार्याय) से मठ की परंपराएं और सेवा-कार्य सदियों से निर्बाध तरीके से चलते आ रहे हैं। मठ सिर्फ पूजा-स्थल नहीं है — यहाँ हर दिन भजन-कीर्तन, प्रार्थना, आरती होती है; साथ ही “अन्नदान” (भोजन वितरण) की परंपरा भी है, जिसे “Anna Brahma” कहा जाता है। हजारों भक्तों को निःशुल्क भोजन मिलता है, जो मठ की सामाजिक सेवा का प्रतीक है।
त्यौहार, भक्ति उत्सव और स्थानीय संस्कृति
- मठ में कई वार्षिक उत्सव मनाए जाते हैं — जैसे Laksha Deepotsava, Krishna Janmashtami, Rathotsava (रथयात्रा) आदि। ये उत्सव श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा हैं। त्यौहारों के दौरान मठ परिसर दीप, भजन-कीर्तन, रथयात्रा व सजीव धार्मिक गतिविधियों से जीवंत हो जाता है — जो न सिर्फ भक्तों बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होता है।
2025 में फिर सुर्खियों में — पीएम मोदी की यात्रा और ‘गीता पाठ’
- 28 नवंबर 2025 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उडुपी श्री कृष्ण मठ पहुंचे — जहां उन्होंने 1 लाख लोगों के साथ सामूहिक भगवद्गीता पाठ (लक्ष-कंठ गीता परायण) कार्यक्रम में भाग लिया।
- इस अवसर पर उन्होंने मठ परिसर में नया “सुवर्ण तीर्थ मंडप” उद्घाटन किया और कनकना किंडी के लिए “कनक कवच” समर्पित किया — जिससे इस पवित्र स्थान की महता और बढ़ गई।
- मोदी ने कहा कि यह मठ हमारी सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत की पहचान है और गीता पाठ जैसे आयोजन समाज में भक्ति, समर्पण व सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश देते हैं।
इस मौजूदा दौर में, यह मठ न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक-संस्कृतिक दृष्टि से भी पुनः प्रमुखता प्राप्त कर रहा है।
“800 साल की विरासत — उडुपी के श्री कृष्ण मठ से गूंजेगी गीता की आवाज़”
उडुपी का श्री कृष्ण मठ — 800 वर्ष पुरानी धरोहर — सिर्फ एक मंदिर नहीं है, यह भक्ति, दर्शन, सेवा और सामाजिक समरसता का जीता जागता उदाहरण है। इसकी अनूठी दर्शन पद्धति, अस्थायी प्रशासनिक परंपरा, दान-सेवा, संगीत-भक्ति, त्योहार और सांस्कृतिक जीवन इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाते हैं।
2025 में प्रधानमंत्री की यात्रा और बड़े स्तर पर गीता पाठ ने मठ की प्रासंगिकता और महत्व को फिर स्थापित किया है। इस मठ की कहानी हमें याद दिलाती है कि धर्म सिर्फ अनुष्ठान नहीं — बल्कि सामाजिक समानता, प्रेम, सेवा और आध्यात्मिकता का रास्ता है।
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