PM MODI Vande Mataram अंग्रेजी षडयंत्र के बीच बंकिम बाबू की कलम से जन्मा ‘वंदेमातरम्’
भारत के राष्ट्रीय जागरण में ‘वंदेमातरम्’ की भूमिका, कांग्रेस की तुष्टिकरण राजनीतिक दबाव के कारण हुए विभाजन के ऐतिहासिक संदर्भ और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के चुनौतीपूर्ण लेखन की कहानी जानें। पूरी जानकारी सरल और रोचक भाषा में।
PM MODI Vande Mataram वंदेमातरम्: तुष्टिकरण, संघर्ष और राष्ट्रजागरण की कहानी
भारत का इतिहास केवल युद्धों और राजनीतिक निर्णयों से नहीं, बल्कि उन भावनाओं और विचारों से भी बना है, जिन्होंने करोड़ों लोगों के हृदय में स्वतंत्रता की चिंगारी पैदा की। उन्हीं विचारों में सबसे शक्तिशाली था—‘वंदेमातरम्’, एक ऐसा गीत जिसने अंग्रेजी सत्ता की नींद उड़ाई और भारतीयों को एक सूत्र में पिरो दिया। मगर इस गीत को लेकर भारतीय राजनीति में कई बार ऐसे मोड़ आए, जहाँ तुष्टिकरण की राजनीति इतनी गहरी हो गई कि इसे भी साम्प्रदायिक विवाद का विषय बना दिया गया।
तुष्टिकरण और कांग्रेस का झुकाव
PM MODI Vande Mataram कहा जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौर में कांग्रेस ने कई बार राजनीतिक संतुलन साधने के लिए ऐसे फैसले लिए, जिनसे राष्ट्रवादी भावनाएँ आहत हुईं। ‘वंदेमातरम्’ भी इसका अपवाद नहीं रहा। कुछ समूहों के दबाव में कांग्रेस ने गीत के कुछ हिस्सों को हटाने तक की बात मानी, और धीरे-धीरे यह समझ गहराती गई कि जब राष्ट्रीय गीत जैसे मुद्दे पर समझौता किया जा सकता है, तो भविष्य में और भी गंभीर समझौते संभव हैं।
इसी राजनीतिक झुकाव और धार्मिक-सामाजिक दबावों के बीच कहा जाता है कि विभाजन के हालात भी मजबूत होते गए। जब राष्ट्रीय एकता का प्रतीक गीत ही विवाद में घिर गया, तब देश की एकता और अखंडता पर भी प्रश्नचिह्न लगने लगे।

अंग्रेजों की साजिश और ‘गॉड सेव द किंग’ का प्रचार
अंग्रेजों की नीति स्पष्ट थी—विभाजित करो और राज करो।
वे अपने राष्ट्रीय गीत ‘गॉड सेव द किंग’ को भारत में घर-घर पहुँचाना चाहते थे। स्कूलों, सरकारी कार्यक्रमों और सार्वजनिक स्थानों पर इस गीत को गाने का दबाव बढ़ाया गया। उद्देश्य स्पष्ट था—भारतीय जनमानस को मानसिक रूप से अधीन बनाना।
लेकिन इतिहास हमेशा प्रतिरोध से ही लिखा जाता है, और यही प्रतिरोध हमें बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के रूप में मिला।
PM MODI Vande Mataram बंकिम बाबू की चुनौती और ‘वंदेमातरम्’ का जन्म
जब अंग्रेजी सत्ता अपना गीत थोपने में लगी थी, तभी बंकिम बाबू ने कलम उठाई। 1870 के दशक में लिखे गए उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में ‘वंदेमातरम्’ पहली बार उभरा—
मां भारती की वंदना, भक्ति और देशप्रेम से भरा एक अद्भुत गीत।
यह सिर्फ साहित्य नहीं था, बल्कि जागरण का बिगुल था।
यह गीत सभा-समितियों, आंदोलनों, रैलियों और युवाओं के जोश में गूँजने लगा।
अंग्रेज इसे खतरनाक मानते थे, क्योंकि यह भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता की आग को हवा देता था। वहीं दूसरी ओर कुछ राजनीतिक दल इसे लेकर सावधानी बरतने लगे, ताकि कोई वर्ग नाराज़ न हो। और यही तुष्टिकरण एक दिन बढ़ते-बढ़ते विभाजन की भूमि तैयार करता गया।
वंदेमातरम्—आज भी राष्ट्र की आत्मा का स्वर
आज भी यह गीत भारत की आत्मा का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि किसी भी देश की पहचान उसके राष्ट्रभाव, उसके प्रतीकों और उसकी संस्कृति से बनती है। और अगर इन पर समझौता हो जाए, तो परिणाम पूरे इतिहास को बदल सकते हैं।
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