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Ramlala : का चेहरा अरुण योगीराज को दीयों की रोशनी में मिला; पढ़ें पूरी कहानी

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Ramlala : अरुण योगीराज ने कहा कि भगवान ने हमें इस काम में नियुक्त किया था। जून में इस प्रक्रिया का प्रारंभ हुआ था। तब से मुझे सिर्फ एक उत्तर देना था कि मूर्ति कैसे बनाई जाएगी। मैंने प्राण प्रतिष्ठा के दिन जनता के साथ रहने का निर्णय लिया। मुझे पता था कि देशवासी मूर्ति को लेकर क्या महसूस कर रहे हैं।

Ramlala : बालकराम की चहेरे के भाव लाना  करना कितना मुश्किल था?

अरुण योगीराज ने कहा कि हमें पांच साल के लला की प्रतिमा बनानी दी गई थी, लेकिन ये सिर्फ पांच साल का बालक नहीं था; श्रीराम उसमें निहित थे। कला भी विज्ञान है। हम कुछ माप होते  हैं। श्रीराम के बाल स्वरूप को गांभीर्य लाना था। बच्चों के साथ मैंने बहुत समय बिताया।

यह सवाल था कि लोग स्वीकार करेंगे या नहीं, इसलिए मैं पहले दो महीने कुछ नहीं बताया। अयोध्या में मैंने दीपावली मनाई। उस रात मैं एक सुंदर चेहरा पाया। माता-पिता बच्चों के साथ दीपावली मनाते समय मुझे वह चेहरा दिखाई दिया। रामलला के चेहरे को दीयों के बीच उकेरने की प्रेरणा मिली।

Ramlala : मूर्ति बनाने पर आपको क्या लगा?

अरुण योगीराज ने इससे पहले कहा कि भगवान ने हमें इस काम के लिए चुना था। जून में इस प्रक्रिया का प्रारंभ हुआ था। तब से मुझे सिर्फ एक उत्तर देना था कि मूर्ति कैसे बनाई जाएगी। मैंने प्राण प्रतिष्ठा के दिन जनता के साथ रहने का निर्णय लिया। मुझे पता था कि देशवासी मूर्ति को लेकर क्या महसूस कर रहे हैं। उस दिन देश की प्रतिक्रिया देखकर आज मैं अपने काम पर गर्व महसूस कर सकता हूँ।

Ramlala : प्राण-प्रतिष्ठा दिन कैसा लगा?

अरुण योगीराज ने कहा कि हम लोग पिछले पांच सौ वर्षों से इस क्षण का इंतजार कर रहे हैं। सभी की आंखें आंसू से भर गईं। मैं भी रो पड़ा। सपना पूरा हो गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था। भगवान ने मुझे मूर्ति बनाने का काम सौंप दिया।

Ramlala : राम की आंखों को कैसे बनाया गया

बालक राम की आंखें कैसे तराशी जाती हैं योगीराज ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि मैं पत्थर के साथ इतना समय बिताया कि मैं पत्थर से बात कर सकता हूँ। नेत्र तराशने से पहले सरयू नदी में स्नान करके हनुमान गढ़ी देखना चाहिए। मैंने बहुत सारी आंखें बनाई हैं, लेकिन उस समय मैं ब्लैंक हो गया था। मैंने सिर्फ राम से कहा कि आप चाहते हैं कि आपकी आंखें बनवा लीजिए। उन आंखों को देश से जोड़ना मेरा सपना था। भगवान की कृपा है कि उसके चेहरे के नेत्र  हर किसी को अच्छे लगते हैं।

Ramlala : राम के साथ पांच वर्ष के बालक भी चाहिए था 

योगीराज अरुण ने कहा कि हमें राम की गंभीरता और पांच साल के बालक का रूप भी देना था। मैं बच्चों के साथ बहुत समय बिताया है इसके लिए। ताकि पांच साल का बच्चा आखिर कैसा होता है। यह पहली बार था कि मैं इससे परेशान था। दीवाली की रात में मैं अयोध्या में था। उसी रात दीपों की रोशनी में मुझे राम का चेहरा दिखाई दिया।

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