Monday, November 10, 2025
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Birsa Munda Jayanti (बिरसा मुंडा जयंती) पर काष्ठ कला का नवजागरण — जनजातीय कलाकार दे रहे पारंपरिक लकड़ी कला को नई पहचान

Birsa Munda Jayanti (बिरसा मुंडा जयंती) पर काष्ठ कला का नवजागरण — जनजातीय कलाकार दे रहे पारंपरिक लकड़ी कला को नई पहचान

Birsa Munda Jayanti (बिरसा मुंडा जयंती) भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर उदयपुर में छह दिवसीय राज्य स्तरीय काष्ठ कला कार्यशाला का आयोजन किया गया है। जनजातीय कलाकार अपनी पारंपरिक लकड़ी कला को आधुनिकता के साथ जोड़कर नई पहचान दे रहे हैं।

उदयपुर, राजस्थान: भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती

Birsa Munda Jayanti
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भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती और जनजाति गौरव वर्ष के उपलक्ष्य में माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर में राज्य स्तरीय काष्ठ कला कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। यह छह दिवसीय कार्यशाला न केवल पारंपरिक कला का मंच है, बल्कि जनजातीय संस्कृति और पहचान के पुनर्जीवन का भी प्रतीक बन गई है।

कार्यशाला में उदयपुर, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और सिरोही जिलों के 25 जनजातीय कलाकार भाग ले रहे हैं। इनमें से कई कलाकार पीढ़ियों से लकड़ी कला में निपुण हैं, लेकिन समय के साथ आधुनिक उपकरणों के आने से यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही थी। अब यह कार्यशाला इस विरासत को फिर से जीवंत करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

Birsa Munda Jayanti काष्ठ कला — जब लकड़ी बोलती है संस्कृति की भाषा

सागवाड़ा से आए कलाकार मयूर डामोर भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा को अपने हाथों से उकेर रहे हैं। वे कहते हैं, “यह सिर्फ एक मूर्ति नहीं, बल्कि हमारी श्रद्धा और परंपरा का प्रतीक है। सात दिनों की मेहनत से जब यह प्रतिमा आकार लेती है, तो ऐसा लगता है जैसे हमारे पूर्वजों की आत्मा फिर से जाग उठी हो।”

Birsa Munda Jayanti
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इसी तरह, डूंगरपुर के खेमराज डिंडोर बताते हैं कि लकड़ी की कृषि और घरेलू वस्तुएं जैसे हल, परात, डोयला, बेलन-बिलोनी आदि पहले हर घर में देखने को मिलती थीं। पर अब मशीनों और आधुनिक उपकरणों के चलते ये चीज़ें इतिहास बनती जा रही हैं। खेमराज कहते हैं, “यह कार्यशाला सिर्फ कला नहीं, एक आंदोलन है — अपनी जड़ों से जुड़ने का।”

कलाकारों ने अपनी कला के लिए सागवान, हल्दू, नीम, साल, आम, अडूसा और बबूल जैसी पारंपरिक लकड़ियों का चयन किया है। हर लकड़ी का चयन उसके उपयोग और पारंपरिक महत्व के अनुसार किया गया है। इन लकड़ियों से तैयार हो रही मूर्तियाँ और वस्तुएँ सिर्फ सुंदर नहीं बल्कि सांस्कृतिक भावनाओं से ओतप्रोत हैं।

दिलीप डामोर, एक अन्य प्रतिभागी का कहना है कि यह कार्यशाला जनजातीय युवाओं के लिए प्रेरणा का माध्यम है। “यहां हम सिर्फ लकड़ी नहीं तराशते, बल्कि अपने भविष्य की राह भी बनाते हैं। कला हमारे लिए रोजगार का नया अवसर बन सकती है,” वे कहते हैं।

Birsa Munda Jayanti
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काष्ठ कला कार्यशाला उदयपुर

यह कार्यशाला सिर्फ प्रशिक्षण नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रदर्शनी भी है, जहां कला और संस्कृति साथ-साथ सांस लेती हैं। यहां तैयार की गई सभी कलाकृतियों का प्रदर्शन 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर डूंगरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में किया जाएगा। यह आयोजन न केवल जनजातीय कलाकारों की प्रतिभा को मंच देगा बल्कि राजस्थान की पारंपरिक काष्ठ कला को भी नई पहचान प्रदान करेगा।

Birsa Munda Jayanti
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भगवान बिरसा मुंडा, जिन्होंने अपने जीवन में आदिवासी समाज को स्वाभिमान और आज़ादी का संदेश दिया, उनकी जयंती पर इस तरह की पहल न केवल श्रद्धांजलि है बल्कि उनकी विरासत को सजीव रखने की कोशिश भी है।



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