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QSQT: ‘कयामत से कयामत तक’ में आमिर ने ऑटो पर पोस्टर चिपकाए, मंसूर से इस बात पर विवाद

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QSQT: रविवार की रात आमिर खान ने अपने टीवी शो सत्यमेव जयते का एक पुराना पोस्टर रिलीज करते ही लोगों ने उनकी वापसी की मांग शुरू कर दी। देश में चल रहे लोकसभा चुनावों को लेकर जारी किए गए इस प्रोमो में कुछ लोग रेड सिगनल जंप करते दिखते हैं, लेकिन कुछ देर बाद वहां वाहनों की कतार भी दिखती है। इस कतार में एक ऑटो भी है; आमिर खान ने अपने जीवन की पहली मार्केटिंग कैंपने में यह ऑटो रिक्शा शामिल किया था। जब उनकी पहली रोमांटिक हीरो फिल्म, “कयामत से कयामत तक” रिलीज़ होने वाली थी, तो वह खुद ऑटोरिक्शा पर पोस्टर चिपकाते दिखते थे, जिसमें लिखा था, “हू इज आमिर खान?” एक आस्क

QSQT: नासिर हुसैन, आमिर खान

QSQT: नासिर हुसैन, आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन के भाई, हिंदी सिनेमा में सफल फिल्म निर्माता और निर्देशक रहे हैं। इन्हीं के बेटे हैं मंसूर खान, जो फिल्म “कयामत से कयामत तक” का निर्देशक था। पहले, मंसूर खान ने आईआईटी की पढ़ाई बीच में छोड़ी और फिर अमेरिका से भी बीच में ही पढ़ाई छोड़कर बंबई लौट आए। तब नासिर हुसैन ने एक दिन मंसूर खान को फोन कर फिल्म बनाने के लिए कहानी दी। फिल्म को मंसूर खान ने अपने चचेरे भाई आमिर खान को हीरो बनाकर शुरू किया।

QSQT: रीना दत्ता, आमिर खान की पहली पत्नी, ने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान बहुत मेहनत की। वह फिल्म के सुपरहिट गाने “Papa Says” में भी कुछ समय के लिए दिखती है। रिलीज से पहले, आमिर खान को सख्त मनाही थी कि वह अपनी शादी के बारे में किसी को नहीं बताएंगे। फिल्म “कयामत से कयामत तक” में उनके पिता ने उनके टीम में संगीतकार आर डी बर्मन और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को मंसूर खान के साथ जोड़ा। मंसूर खान की आर डी बर्मन से कोई तुलना नहीं है। उन दिनों आनंद-मिलिंद, चित्रगुप्त के बेटे, कुछ फिल्मों में संगीत दे चुके थे।

दोनों का काम मंसूर को पसंद आया, इसलिए उन्होंने दोनों को एक ऐसी धुन बनाने की जिम्मेदारी दी जिससे युवा खुश हो जाएं। इस मामले में आनंद मिलिंद खरे साबित हुए, जिस धुन पर मजरूह सुल्तानपुरी ने गाना लिखा, “पापा कहते हैं”। फिल्म का सबसे लोकप्रिय गाना, पापा शब्द मंसूर को पसंद नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने पिता की बात मानी और ये लाइन ऐसे ही रहने दी। हम सब जानते हैं कि इसके बाद क्या हुआ, और गीत 2024 में भी लोकप्रिय है।

QSQT: मजरूह सुल्तानपुरी उसी दिन 70 साल के हो रहे थे जब उन्होंने ये गाना लिखा था। उन्हें मंसूर की भावनाओं का एहसास हुआ, और मजरूर सुल्तानपुरी की बहुत सी विशेषताओं में से एक यह है कि उनके गाने हमेशा समय के साथ बदलते रहे। मजरूह सुल्तानपुरी ने देव आनंद की फिल्म “तीन देवियां” के लिए 1965 में “ऐसे तो ना देखो..” लिखा था, जो 29 अप्रैल 1988 को रिलीज हुई फिल्म “कयामत से कयामत तक” के लिए भी लिखा था।

“पिताजी फिल्म की हैपी एंडिंग चाहते थे,” मंसूर खान ने फिल्म “कयामत से कयामत तक” की एक दिलचस्प कहानी बताई। मैंने भी ये सीन उनके अनुरूप शूट किए, लेकिन इसके बावजूद वह फिल्म का अंत वैसा ही रखने को मान गए जैसा मैं चाहता था।‘कयामत से कयामत तक’ के बाद मंसूर खान ने तीन अन्य फिल्में बनाईं: जीता वही सिकंदर, अकेले हम अकेले तुम और जोश। फिल्म “जोश” की कास्टिंग को लेकर उनका आमिर खान से विवाद भी हुआ, इसलिए वह फिल्मों से छुट्टी लेकर कुनूर में बस गए, जहां उन्होंने एक बड़ा खेत बनाया है।

“पिताजी फिल्म की हैपी एंडिंग चाहते थे”, मंसूर खान ने फिल्म “कयामत से कयामत तक” की एक दिलचस्प कहानी बताई। मैंने भी ये सीन उनके अनुरूप शूट किए, लेकिन इसके बावजूद वह फिल्म का क्लाइमेक्स मुझे पसंद था।‘कयामत से कयामत तक’ के बाद मंसूर खान ने तीन और फिल्में बनाईं: जीता वही सिकंदर, अकेले हम अकेले तुम और जोश। फिल्म ‘जोश’ की कास्टिंग को लेकर उनका आमिर खान से विवाद भी हुआ, इसलिए वह फिल्मों का काम छोड़कर कुनूर में बस गए, जहां उन्होंने एक बड़ा सा कृषि फार्म खोला है।

QSQT: ‘कयामत से कयामत तक’ में आमिर ने ऑटो पर पोस्टर चिपकाए, मंसूर से इस बात पर विवाद

Qayamat Se Qayamat Tak बनी थी इतने करोड़ में और कमाए इतने करोड़ | Aamir Khan | Juhi Chawla


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