Buddha Relics नई दिल्ली से थिम्पू तक – भारत-भूटान के आध्यात्मिक संबंधों को जोड़ते बुद्ध के पवित्र अवशेष
Buddha Relics सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के साथ भूटान पहुंचा। ये अवशेष थिम्पू में 11 दिनों तक प्रदर्शित किए जाएंगे। यह आयोजन वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव का हिस्सा है।
भारत और भूटान के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को एक नई ऊँचाई देते हुए, भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों (Sacred Relics of Lord Buddha) को लेकर एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल शुक्रवार को भूटान पहुंचा। यह प्रतिनिधिमंडल सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार के नेतृत्व में भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से थिम्पू (Thimphu) पहुँचा।

यह ऐतिहासिक अवसर भारत-भूटान के साझा बौद्ध विरासत और गहरे सांस्कृतिक बंधन का प्रतीक माना जा रहा है। थिम्पू में इन पवित्र अवशेषों का ग्यारह दिवसीय सार्वजनिक प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा ताकि श्रद्धालु और बौद्ध अनुयायी इनका दर्शन कर सकें और भगवान बुद्ध के उपदेशों से प्रेरणा ले सकें।

राष्ट्रीय संग्रहालय से भूटान तक की यात्रा Buddha Relics
भगवान बुद्ध के ये पवित्र अवशेष नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum, New Delhi) से विशेष सुरक्षा और सम्मान के साथ लाए गए हैं। यह अवशेष बौद्ध धर्म की सबसे मूल्यवान धरोहरों में से एक माने जाते हैं। इनका भूटान में प्रदर्शन विशेष रूप से आयोजित ‘वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव’ (Global Peace Prayer Festival) का हिस्सा है, जिसे भूटान सरकार और भारत के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।
संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि इन अवशेषों का भूटान में प्रदर्शन दोनों देशों की आध्यात्मिक एकता और सदियों पुराने संबंधों को और मजबूत करेगा। यह आयोजन बौद्ध समुदाय के लिए अत्यंत श्रद्धा और गौरव का विषय है।

वैश्विक शांति और सद्भाव का संदेश Buddha Relics
डॉ. वीरेंद्र कुमार ने भूटान आगमन पर कहा कि “भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए सबसे बड़ा मार्गदर्शन हैं। उनका जीवन करुणा, शांति और समभाव का प्रतीक है। यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि भारत की यह पवित्र धरोहर भूटान की धरती पर प्रदर्शित की जा रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भगवान बुद्ध के अवशेष न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि कूटनीतिक रूप से भी भारत और भूटान के बीच संबंधों को सशक्त बनाते हैं।
थिम्पू में होगा भव्य प्रदर्शन
थिम्पू के मुख्य मठ में आयोजित यह 11 दिवसीय प्रदर्शनी श्रद्धालुओं के लिए खुली रहेगी। इस दौरान विशेष प्रार्थना सभाएं, ध्यान सत्र और बौद्ध शिक्षाओं पर संगोष्ठियाँ आयोजित की जाएंगी।
भूटान सरकार ने इस अवसर को ऐतिहासिक बताया है। भूटान के धार्मिक मामलों के मंत्री ने कहा कि “यह आयोजन हमारे दोनों देशों के आध्यात्मिक संबंधों का सशक्त प्रतीक है। भगवान बुद्ध के अवशेष हमें यह याद दिलाते हैं कि शांति और करुणा ही स्थायी प्रगति का मार्ग हैं।”
भारत-भूटान संबंधों की गहराई
भारत और भूटान के बीच सदियों पुराने संबंध न केवल राजनीतिक और आर्थिक हैं, बल्कि आध्यात्मिक भी हैं। बौद्ध धर्म दोनों देशों की सांस्कृतिक आत्मा में गहराई से जुड़ा हुआ है। भारत में बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर जैसे स्थान बौद्ध तीर्थों के प्रमुख केंद्र हैं, वहीं भूटान को “लैंड ऑफ द थंडर ड्रैगन” कहा जाता है, जहाँ बौद्ध परंपराएँ जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
इस यात्रा को दोनों देशों के बीच “संस्कृति कूटनीति (Cultural Diplomacy)” का महत्वपूर्ण उदाहरण माना जा रहा है, जो पारस्परिक सम्मान और सहयोग के नए अध्याय खोलती है।
भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों का भूटान में प्रदर्शन न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारत-भूटान की साझी विरासत और वैश्विक शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इस आयोजन से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव और गहरा होगा तथा दुनिया को शांति और करुणा का सार्वभौमिक संदेश मिलेगा।
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