Jyothi Yarraji Gold Medal: इतिहास रच दिया खाली स्टेडियम में जब गूंजा जन-गण-मन; ज्योति याराजी की आँखों में थे आंसू और सीने में गर्व
Jyothi Yarraji Gold Medal: भारतीय एथलीट ज्योति याराजी ने सन्नाटे के बीच स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। दर्शकों की कमी के बावजूद, जब स्टेडियम में तिरंगा लहराया तो उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े। पढ़ें इस भावुक जीत की पूरी कहानी।
जब तिरंगा लहराया, तो वो अपने आंसू नहीं रोक पाईं। 🥺🇮🇳 ज्योति याराजी, आपने हमें गर्व करने का मौका दिया है। पूरा देश आपके साथ खड़ा है। जय हिन्द!


खामोश स्टेडियम, भीगी पलकें और सोने की चमक: ज्योति याराजी की वो दौड़ जिसने सन्नाटे में रचा इतिहास
खेल के मैदान में अक्सर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के लिए हजारों दर्शकों का शोर, ढोल-नगाड़े और तालियां होती हैं। लेकिन क्या हो जब स्टेडियम में सन्नाटा हो? क्या हो जब आपकी जीत पर ताली बजाने वाला कोई न हो? भारतीय एथलीट ज्योति याराजी (Jyothi Yarraji) ने साबित कर दिया कि जीत शोर की मोहताज नहीं होती। उन्होंने न केवल दौड़ लगाई, बल्कि सन्नाटे को चीरते हुए भारत के लिए स्वर्ण पदक (Gold Medal) हासिल किया।
Jyothi Yarraji Gold Medal सन्नाटे में गूंजी कदमों की आहट
यह नजारा किसी भी खिलाड़ी के लिए दिल तोड़ने वाला हो सकता था। स्टेडियम खाली था, दर्शकों की दीर्घाएं वीरान थीं। वहां न तो भारत के समर्थन में नारे लग रहे थे और न ही कोई उत्साह बढ़ाने वाला शोर था। लेकिन ट्रैक पर खड़ी ज्योति याराजी का ध्यान इन सब बातों पर नहीं, बल्कि सामने खड़ी बाधाओं (Hurdles) और फिनिश लाइन पर था।
जैसे ही रेस शुरू हुई, स्टेडियम में सिर्फ खिलाड़ियों के दौड़ने और सांसों की आवाज सुनाई दे रही थी। ज्योति ने हवा से बातें कीं। उन्होंने एक-एक कर सभी बाधाओं को पार किया और सबसे पहले फिनिश लाइन को छू लिया। यह जीत थी एकाग्रता की, यह जीत थी उस तपस्या की जो उन्होंने सालों तक की थी।
तिरंगा देख छलक पड़े आंसू
रेस जीतने के बाद असली भावुक पल तब आया जब मेडल सेरेमनी हुई। पोडियम पर खड़ीं ज्योति के गले में जब स्वर्ण पदक पहनाया गया और स्टेडियम में भारत का राष्ट्रगान गूंजना शुरू हुआ, तब वहां मौजूद सन्नाटा एक दैवीय शांति में बदल गया।

जैसे-जैसे भारत का राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ रहा था, ज्योति याराजी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकीं। उनकी आँखों से आंसू बह निकले। ये आंसू दुख के नहीं, बल्कि गर्व और संघर्ष के थे। यह उन अनगिनत घंटों की मेहनत का परिणाम था जो उन्होंने अकेले ट्रेनिंग करते हुए बिताए थे। उस खाली स्टेडियम में, भले ही ताली बजाने वाले हाथ कम थे, लेकिन तिरंगे की शान में उनका सिर गर्व से ऊंचा था।
संघर्ष से सफलता तक
आंध्र प्रदेश के एक साधारण परिवार से आने वाली ज्योति याराजी का सफर कभी आसान नहीं रहा। संसाधनों की कमी और कई बार चोटों (Injuries) ने उन्हें तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 100 मीटर बाधा दौड़ (Hurdles) में भारत की ‘क्वीन’ बन चुकीं ज्योति ने कई बार राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़े हैं।
यह जीत उन सभी आलोचकों के लिए जवाब थी और उन सभी युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा, जो सुविधाओं या समर्थन की कमी का रोना रोते हैं। ज्योति ने दिखा दिया कि अगर आपके पैरों में जान और दिल में देश बसता है, तो आपको जीतने से कोई नहीं रोक सकता—चाहे पूरा स्टेडियम खाली ही क्यों न हो। आज भले ही वहां दर्शक नहीं थे, लेकिन इस खबर के बाद पूरा भारत उनके लिए खड़ा होकर तालियां बजा रहा है।
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