MNREGA New Name मनरेगा का नाम बदलकर होगा ‘VB G RAM G’, क्या बदलेगी भारत में ग्रामीण रोजगार की ज़मीनी हकीकत?
MNREGA New Name नाम बदलेगा, ढांचा बदलेगा… लेकिन क्या बदलेगी ग्रामीण मज़दूर की ज़िंदगी? मनरेगा से VB G RAM G तक का सफ़र।
केंद्र सरकार मनरेगा का नाम बदलकर Respected Bapu Rural Employment Guarantee (VB G RAM G) करने की तैयारी में है। जानिए क्या इससे ग्रामीण रोजगार की हकीकत भी बदलेगी।
कृषि क्षेत्र से जोड़ने पर बदलेगी सुरत
देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा (MGNREGA) अब नए नाम और नए ढांचे के साथ सामने आ सकती है। केंद्र सरकार इस योजना का नाम बदलकर Respected Bapu Rural Employment Guarantee (VB G RAM G) रखने की तैयारी कर रही है। सरकार का दावा है कि यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं होगा, बल्कि योजना के क्रियान्वयन, निगरानी और असर में भी सुधार लाएगा। लेकिन सवाल यही है कि क्या नाम बदलने से ग्रामीण भारत की रोजगार हकीकत भी बदलेगी?


मनरेगा की शुरुआत 2005 में ग्रामीण गरीबों को साल में कम से कम 100 दिन का रोज़गार देने के उद्देश्य से की गई थी। बीते दो दशकों में इस योजना ने करोड़ों ग्रामीण परिवारों को सहारा दिया, खासकर सूखा, महामारी और आर्थिक संकट के समय। कोरोना काल में मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए जीवनरेखा साबित हुई थी। इसके बावजूद मज़दूरी भुगतान में देरी, काम की कमी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे लंबे समय से चर्चा में रहे हैं।


ना नियमित काम, ना सौ दिन की गारंटी
सरकार का कहना है कि VB G RAM G के तहत योजना को “आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत” की सोच से जोड़ा जाएगा। इसमें केवल अस्थायी मज़दूरी ही नहीं, बल्कि टिकाऊ संपत्तियों का निर्माण, स्किल डेवलपमेंट और टेक्नोलॉजी आधारित निगरानी पर ज़ोर होगा। डिजिटल हाज़िरी, जियो-टैगिंग और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को और मज़बूत किया जाएगा ताकि पारदर्शिता बढ़े।

ग्रामीण रोज़गार की असली समस्या नाम से नहीं, बल्कि बजट आवंटन और ज़मीनी क्रियान्वयन से जुड़ी है। पिछले कुछ वर्षों में मनरेगा के बजट को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कई राज्यों में काम की मांग के बावजूद मज़दूरों को पूरे 100 दिन का रोज़गार नहीं मिल पा रहा। ऐसे में अगर नए नाम के साथ पर्याप्त फंड और मज़बूत प्रशासनिक इच्छाशक्ति नहीं आई, तो बदलाव सिर्फ काग़ज़ों तक सीमित रह सकता है।
योजना एक, मजदुरियां अलग-अलग


ग्रामीण मज़दूरों के लिए सबसे अहम सवाल आज भी वही है—“क्या समय पर काम मिलेगा और पूरी मज़दूरी मिलेगी?” अगर Respected Bapu Rural Employment Guarantee इस सवाल का ठोस जवाब दे पाती है, तो यह बदलाव ऐतिहासिक साबित हो सकता है। लेकिन अगर यह सिर्फ री-ब्रांडिंग बनकर रह गई, तो ग्रामीण बेरोज़गारी की चुनौती जस की तस बनी रहेगी।
मनरेगा केंद्र की योजना है, मनरेगा एक केंद्र द्वारा चलायी जाने वाली रोजगार गारंटी योजना है, लेकिन भिन्न-भिन्न राज्यों में मजदूरी की दरें अलग-अलग हैं। ‘एक देश, एक मजदूरी’ का सिद्धांत इस योजना में लागू नहीं होता। इसी वजह से जब औसत मजदूरी और काम के दिनों को जोड़ा जाता है, तो उससे ग्रामीण रोजगार और आय की स्थिति पर कोई बड़ी असरकारी बदलाव नहीं दिखता।
मनरेगा से VB G RAM G तक का सफ़र तभी सार्थक होगा जब सरकार नाम के साथ-साथ नीतियों, बजट और ज़मीनी अमल में भी ठोस बदलाव करे। ग्रामीण भारत को आज नाम नहीं, बल्कि भरोसेमंद रोज़गार की ज़रूरत है।
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